ई बाढ़ में हमनी के साथे मालजाल भी भुखे मर ता। बाढ़ से सब घास दह गइल आ सरेह में पानी लाग गयल। जेसे माल जाल के परेशानी बढ़ गइल बा। हमनी के साथ साथ माल जाल के भी खइला पर आफत आ गइल बा। चालीस रुपया ट्रैक्टर के भाड़ा देके घास लावतानी सन। यह बात माली के अनिल कुमार कहते हुए अपनी परेशानी बताई। घास लदे ट्रॉली पर सवार अन्य लोगों ने बताया हम भूखे रह सकते पर अपने मवेशियों को भूखे तड़पते नहीं देख सकते हैं। चाहे जितनी दूर से घास लाना पड़े।
वहीं साथ में बैठी अन्य महिलाएं अपना नाम बताने से इंकार करते हुए बताया कि हमलोगों का बाढ़ में सब कुछ बर्बाद हो गया। अब जो बचा है उनके लिए कोसों दूर जाकर घास भूसा ला रहे है। भोजन, घास के अभाव में भैंस दुध भी कम कर दिया है। बाढ़ प्रभावित पशुपालक बेजुबानों की भूख मिटाने के लिए खतरे मोल दूर दराज जाकर चारा की व्यवस्था कर रहे हं। प्रखंड के माली, सुकुल पाकड, छपरा बहास आदि पंचायत के बड़े संख्या मे लोग करीब 10-15 किलोमीटर की दूरी तय कर कोबेया एवं हरसिद्धि तथा पहाड़ पुर प्रखंड के सरेह में पहुंच लोग चारा-घास की व्यवस्था कर रहे हैं।
पशु का हाल देख लोगों का कांप रहा कलेजा
प्रखंड में आई बाढ़ से जहां आमजन परेशान हैं वहीं मवेशियों को उनके चारे के लाले पड़ गए है। बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए अपने पशु को घास खिलाना कठिन चुनौती बन गई है। जहां बाढ़ के चपेट मे आने से अधिकांश जगहों पर लोगों को भोजन ठीक से नसीब नही हो पाता था। वहीं मवेशियों को भूखे पेट रहना पड़ता था। इस स्थिति में पशुओं का स्थिति बुरा हो गया है। बाढ़ के कारण पशुओं के भोजन के लिए रखे गये भूसा, पुआल आदि सब बाढ़ के पानी में बर्बाद हो गया।
जबकि बाढ़ प्रभावित जगहों पर सभी प्रकार के घास, खर-पतवार पानी में डूब गया है। जिससे मवेशियों का पेट भरना मुश्किल हो गया है।जहां अपने बैल, भैंस, गाय आदि जानवरों को लोग ठीक से खिला नहीं पा रहे है। सबसे तो बुरा स्थिति तो दुधारु पशु गाय और भैंस का है। जिन्हें रोज घास चरने की आदत है। पर आज बाढ़ ने उनका चारा भी छिन लिया। भूख से तड़पते अपने पशु का हाल देख लोगों का कलेजा कांप रहा। पर कठिन परिस्थितियों से गुजर लोग अपने मवेशियों के लिए घास की व्यवस्था करने में पीछे भी नहीं।
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