मछली, मखाना, पाग, मिथिला पेंटिंग और पद्मश्री की चर्चा हो तो मधुबनी का ध्यान आता है। दूल्हों का मेला सौराठ सभा इसी धरती पर होता रहा है। कवि विद्यापति यहीं के हैं। अतीत बेहद गौरवशाली, पर वर्तमान स्याह। सड़क और बिजली के मामले में यह दूसरे जिलों के मुकाबले आगे है। पर, यहीं तक विकास दिखता है। कभी तीन चीनी मिलों के कारण गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत थी।
सूत मिल और सैलर के रूप में बड़ा उद्योग था। चुनाव के वक्त ही इनकी चर्चा होती है। इस बार भी हो रही है। यही हाल शिक्षा का है। कभी यहां के वाटसन स्कूल ( सूर्य देव नारायण गरमैता बालक उच्च विद्यालय) के हास्टल में ही पांच हजार से अधिक बच्चे रहते थे। सूरी हाईस्कूल (गोकुल मथुरा सूरी समाज उच्च विद्यालय) का डंका बजता था। अब न तो पहले की तरह बच्चों में आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा है और न ही उन्हें उच्च मुकाम तक पहुंचाने की व्यवस्था।
सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग जरूर बन गई है, पर शिक्षा यहां से दूर हो गई है। निजी स्कूलों के भरोसे बच्चे हैं। लोगों की सबसे बड़ी चिंता में से यह एक है। मखाना को उद्योग का दर्जा देने की बात भी खूब हुई, लेकिन अब तक उत्पादकों को लाभ नहीं मिला। मधुबनी पेंटिंग की देश-विदेश में सराहना तो हुई, पर इससे जुड़े कलाकार रोजगार के लिए तरस रहे।
हां, यह जरूर हुआ कि सरकारी भवनों पर मिथिला पेंटिंग उकेर कर यह दिखाया जा रहा है कि इसी क्षेत्र से तीन-तीन पद्मश्री चुनीं गईं महिलाओं के शहर में आप हैं। यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके प्रत्याशियों से जनता इन मु्द्दों पर सवाल पूछती है तो वे दूसरों के सिर पर ठीकरा फोड़ने में जुट जाते हैं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3kJTxYb
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box