सासाराम के मेन बाजार में चाय पीते हुए अचानक मेरे कान में ये बात आई। मैं और मेरा ड्राइवर जय पूरे दिन की थकान के बाद चाय पीने के लिए रुके थे। वहां एक कतार में कुछ फल की दुकानें हैं, तो एक अदद चाय की दुकान भी। पलटकर देखा तो कुछ युवा जो पढ़ने वाले तो नहीं ही थे, लेकिन राजनीति में अपना भविष्य तलाश रहे होंगे, ऐसा साफ दिख रहा था। पहनावा बता रहा था कि अभी राजनीति का रंग चढ़ा ही है। खादी की सफेद शर्ट और ब्लू जींस इधर एक नया ट्रेडमार्क बन गया है।
मैंने टोकते हुए कहा- भाई पिछली बार भाजपा के 75 लोग संक्रमित हो गए थे... अब फिर से...।
एक लड़का, जो उम्र में उन सभी से ज्यादा दिख रहा था, बोला- ‘हां सर भाजपा ऑफिस में एक साथ 75 नेता के कोरोना हो गया था... बहुते दिन तक भाजपा ऑफिस बंद था... किसी को जाने नहीं दिया जाता था।’
दूसरे लड़के ने कहा- कि भईया उ समय 75 गो नेता के कोरोना भइल रहे, कि खाली हल्ला भइल रहे।
तीसरे ने कहा- ‘अरे बुड़बक जब जांच भइल रहे भाजपा में, ओकरा में भाजपा के लोग ही न रहीहन।’
मैंने फिर टोका- अबकी किसको-किसको हो गया है कोरोना? ज्यादा उम्र वाले ने जवाब दिया, ‘अबकी सब स्टार प्रचारक लोग के हो गया है कोरोना... सुने हैं राजीव प्रताव रूडी, शहनवाज हुसैन, सुशील मोदी को भी कोरोना हो गया है। सुशील मोदी त हॉस्पीटल में भर्ती भी हो गए हैं। हमको तो लगता है कि मंगलो पांडे के कोरोना हो गईल बा। मंगल त स्वास्थ्य मंत्री भी बाडे अउर उ त भाजपा के चुनाव भी देख रहे हैं। ई लोग के पहले कोरोना ना भइल रहे। हमको तो कुछ और बात लगता है।' ये कहते-कहते वो चुप हो गया।
मैंने फिर उसकाया, क्या लगता है आपको? बोला- ‘छोड़िए सर... बहुत कुछ हल्ला है...।’
क्या हल्ला है? जवाब मिला- ‘छोड़िए ना सर। काहे इसके पीछे पड़ गए हैं। लगता है कि आप मीडिया वाले हैं।’ आश्वस्त होने के बाद कि मीडिया से नहीं हूं, उसे थोड़ी राहत मिली। फिर कहा- ‘तब ठीक है, बताते हैं। जानते हैं, हमको तो लगता है कि जमीन पर एनडीए के हालत खराब हैं। जवन भीड़ के उम्मीद कर रहा था लोग ना, वैसा जुट नहीं रहा है। त हमको लगता है कि भाजपा वाला सब बहाना बना दिया है। अउर शहनवाज-रुडी के त मामले दूसरा है। उ दूनो के त पहिले स्टार नहीं न बनाया गया था। जब बनाया गया त उ लोग अपना के बीमार कर लिए। हमको तो लगता है कि ई अपना अपमान के बदला ले रहे हैं सब।’ दूसरे ने कहा- ‘सब पहिले से ही बाउंडरी बांध रहा है।’
तब तक मेरी चाय खत्म हो चुकी थी और उन सबको भी किसी प्रत्याशी के प्रचार में जाना था। उनकी मोटरसाइकिलें स्टार्ट हो चुकी थीं। बिना हेलमेट, बिना मास्क, ट्रिपल लोडिंग पर वे सब निकल चुके थे। उनका एक साथी रह गया था। उससे पूछा तो बोला- कई जगह से कॉन्ट्रैक्ट बनाकर रखना पड़ता है न सर। बहुत दिन से बेरोजगार हैं न।
बदलती बयार में राजनीति का एक और सच सामने आ चुका था।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2G2J1MG
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box