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मुगलकालीन सिक्के मिले, बंटवारे में हुआ विवाद तो खुली पोल https://ift.tt/2YTgfUc

मुफस्सिल थाना क्षेत्र के रजीगंज गांव के पास बांसबाड़ी में मिट्टी काटने के दौरान चार दिन पहले मजदूरों को मुगलकालीन चांदी का सिक्का मिला। सिक्के के बंटवारे के दौरान विवाद होने पर इसकी पोल खुली। यह सिक्का दो सौ साल से ज्यादा पुराना बताया जा रहा है।
सिक्का मिलने के बाद मजदूर काम छोड़कर अपने घर चले गए। सिक्के के बारे में दो दिनों तक किसी को जानकारी नहीं मिली। जब सिक्के के बंटवारे को लेकर मजदूरों में विवाद हुआ तो पूरे गांव में इसका शोर मच गया। इसके बाद जमीन मालिक आया और भय दिखाकर कुछ सिक्का मजदूरों से ले लिया। जानकारी यह भी मिल रही है कि कुछ मजदुरों ने तो चंद रुपए के लोभ में सिक्के को बेच भी डाला है।
बताया जाता है कि रानीपतरा रेलवे गुमटी महादलित टोला के आठ मजदूर चार दिन पूर्व रजीगंज गांव के सूदन साह की जमीन पर मिट्टी काट रहे थे। मिट्टी काटने के दौरान मजदूरों को एक मिट्टी के गोल छोटे बर्तन में 30-40 चांदी का सिक्का मिला।

मिट्टी खुदाई करने वाले मजदूर सत्तन ऋषि ने बताया कि हमलोग आठ मजदूर मिट्टी काट रहे थे कि उसी दौरान जीवन ऋषि को गोलाकार मिट्टी के छोटे बर्तन में खुदाई के दौरान करीब 30 सिक्का मिला। इसके बाद हमलोग काम छोड़कर वापस अपने घर चले गए। जानकारी मिलते ही जमीन मालिक ने डरा-धमका कर सिक्का ले लिया। मामले में जब जमीन मालिक के बेटे राकेश कुमार से बातचीत की गई तो वह कुछ भी बताने से इंकार कर दिया।

मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के समय का है सिक्का, फारसी भाषा में दर्ज हैं कई जानकारियां
रजीगंज गांव के समीप बांस बाड़ी में मिला सिक्का 217 साल से ज्यादा पुराना बताया जा रहा है। सिक्कों के बारे में गूगल व अन्य स्त्रोतों से जानकारी इकट्ठा की गई तो पता चला कि यह सिक्का मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के समय का है। इस सिक्के में फारसी भाषा में कई जानकारियां दर्ज है। फारसी में इस पर‘हामी दीन आला मोहम्मद सिक्का फजल शाह आलम बादशाह जर्ब हफ्त किशवर 1803’ लिखा हुआ है। एक्सपर्ट मौलवी समसुद्दीन बताते हैं कि इसका मतलब ‘दीने मोहम्मद (इस्लाम धर्म) के पैरोकार बादशाह की पूरी हुकूमत में चलने वाला सिक्का होता है। वहीं, इतिहास के व्याख्याता प्रो. कमलेश्वरी मेहता ने बताया कि 250 वर्ष पूर्व रजीगंज गांव में कुछ ऐसे समाज के लोग रहते थे, जो गुड़ का कारोबार करते थे। भीषण महामारी आने के बाद जब गांव सूना पड़ने लगा तो बहुत लोग अपना घर-बार छोड़ कर भाग निकले। हो सकता है उन्हीं लोगों के समय में मिट्टी के अंदर रखा यह सिक्का हो।

1779 के आसपास का है सिक्का : डॉ. वेग

उर्दू, अरबी के जानकार व इग्नू सहरसा के निदेशक डॉ. मिर्जा निहाल ए बेग ने बताया कि यह सिक्का 1779 ईस्वी का है। सिक्के पर 19 जुलूस अंकित है। मुस्लिम में जुलूस ताजपोशी के साल को कहते हैं। अंग्रेजी में यह 1779 के आस-पास का समय होता है। साथ ही इस पर मुर्शिदाबाद भी अंकित है। बादशाह शाह आलम (द्वितीय) ने 1760-1806 तक शासन किया था। इस पर हामी दिने मुहम्मद लिखा है। यानी बादशाह शाह आलम के समय का यह सिक्का हो सकता है।



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