हिंदी मगही और भोजपुरी के रंग में रंगा आज का जुटान ऑनलाइन कवि सम्मेलन रोटी, ईमान, सपना, सियासत, न्याय और सावन के बहुरंगी काव्य सृजन का नमूना था जिसमें कवियों ने चरम तक पहुंचने की कोशिश की । अध्यक्षता नरेंद्र प्रसाद सिंह ने किया जबकि संचालन व्यंगकार उदय भारती ने की । मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार टाटा से लक्षमण प्रसाद थे । “वसुन्धरे कुछ बोल भी दे / न रह निकल मुख खोल भी दे “जैसी पंक्तियों से राशि सिन्हा ने कविसम्मेलन का आगाज किया ।
भोजपुरी में मणिकांत मणि ने “सुलगेला सियासत जब / बदला के आग में / उठेला भारत के माटी से तूफान “ कविता कहकर सियासत के दाव-पेंच से अवगत कराया । कवयित्री किरण शर्मा ने ‘तों शीश देला हम सेनुर देलूं सीमा पर” पंक्ति के माध्यम से नारी व्यथा में राष्ट्रवाद का परिचय दिया । कवि जयनंदन ने मौसम के बिगड़ते हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा “ रे सावन तों ठग हे, लिलकावे हे । अध्यक्ष नरेंद्र प्रसाद सिंह ने “सुप-सुप जब फटक फटक के / आज कयलक ढेरी चुहवन चोखे माल मार के बढ़ा लेलक तब ढोढ़ी “ व्यंग्य से वर्तमान को रखा । मुख्य अतिथि लक्ष्मण प्रसाद ने “फोहवा सन् मन भी सेयान हो जाहे / जखने आधा गो रोटी ईमान ले जा हे “मगही गजल से समां बांध दिया ।
व्यंगकार उदय भारती ने “जिनखर पूत बइठल हे जाके संसद आउ मंत्रालय में “जैसे व्यंग्य बाण चला कर व्यवस्था पर प्रहार किया । कवि मिथिलेश ने “ बैतरणी तैर के पार हो जइबो “कहकर निराशा के भँवर से निकलने की कोशिश की । अशोक समदर्शी ने “घर के सपना दे गेलइ देवाल छीन के / किंछार देखावस हे ऊ पतवार छीन के “मगही गजल से ऑनलाइन कविसम्मेलन को ऊंचाई प्रदान की । अंत में जुटान के संयोजक शंभु विश्वकर्मा ने जिनगी के चन्द बचल सांस हे गीत से समापन किया । अध्यक्ष नरेंद्र प्रसाद सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन के बाद जुटान के इस प्रयास की सराहना की ।
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