उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के रहने वाले अयोध्या प्रसाद बचपन से ही आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे थे। हालत इतनी खराब थी कि पढ़ाई की बात तो सोच भी नहीं सकते थे। बचपन से ही जब भी पिता कहीं किसी के लिए बागवानी करने जाते तब वह अयोध्या प्रसाद को साथ ले जाते थे।
धीरे-धीरे अयोध्या प्रसाद बागवानी का काम सीख गए और फिर मजबूरन उन्होंने अपने खानदानी पेशे को ही अपना लिया। दूसरों की बगिया में फूल खिलाने लगे, लेकिन उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि दूसरों की बगिया में फूल खिलाते- खिलाते एक दिन उनके ही घर के आंगन में एक ऐसा फूल खिलेगा जो पूरे परिवार और समाज को सुगंधित कर देगा।
भले ही पैसे के आभाव में उनकी अपनी पढ़ाई नहीं हो सकी, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनका बहुत ही रुझान था। अपने सभी चार बच्चों को पढ़ाने की उनकी प्रबल-इच्छा थी। इस उम्मीद में कि एक न एक दिन पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा, उन्होंने अपने सबसे बड़े बच्चे का नाम विद्यासागर रख दिया। नाम के अनुकूल विद्यासागर बहुत ही छोटी उम्र से ही पढ़ाई में खूब मन लगाता था।
गांव के बगल के सरकारी स्कूल से उसकी पढ़ाई शुरू हो गई थी, लेकिन जिंदगी की जंग इतनी आसन नहीं होती है। विद्यासागर को एक कक्षा से दूसरी कक्षा तक जाने के लिए हर साल इम्तिहान देना पड़ता था। पिता को जो भी पैसा मिलता था, 20 दिनों के अंदर ही सब खत्म हो जाता था। महीने के बाकी 10 दिनों के लिए महाजन से उधार ही लेना पड़ता था। कभी-कभी तो कोई उधार भी नहीं देता था। ऐसी स्तिथि में एक-एक दिन परिवार पर भारी पड़ता था।
समय बीतता चला गया और विद्यासागर आठवीं कक्षा में पहुंच गया। उसके पास पुरानी किताबें भी खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। विद्यासागर बताता है कि जब परीक्षा में बहुत कम दिन बचे थे तब किसी दोस्त ने पढ़ने के लिए दो किताब दे दी थीं। बावजूद इन हालातों के विद्यासागर कभी निराश नहीं हुआ। अब दसवीं की बोर्ड परीक्षा भी नजदीक आ गई थी। विद्यासागर भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था।
कुछ दोस्त शाम को ट्यूशन पढ़ने जाते थे और विद्यासागर के पास पूरी किताबें भी नहीं थी। वह अपने दोस्तों से निवेदन करके ट्यूशन के नोट्स और कुछ किताबें उधार मांगकर काम चला लेता था। विद्यासागर अच्छे अंकों से दसवीं पास कर गया था। घर में बहुत ही खुशी का माहौल था। कुछ दोस्त आगे की पढ़ाई के लिए शहर चले गए। पैसे के आभाव में विद्यासागर ने गांव के पास इंटर कॉलेज से आगे की पढ़ाई जारी रखी। उसे पता नहीं था कि आगे करना क्या है।
बस मन लगाकर खूब पढ़ना है , वह सिर्फ इतना ही जनता था। एक दिन किसी ने उसे कॉलेज में ही बताया कि इंजीनियर बनने का लिये आईआईटी सबसे अच्छा विकल्प है। फिर क्या, उसी दिन से विद्यासागर आईआईटी में जाने का सपना देखने लगा। और फिर कुछ दिनों के बाद सुपर 30 तक पहुंचने का रास्ता भी पता चल गया। लखनऊ में सुपर 30 के चयन के लिए आयोजित परीक्षा में उसका सलेक्शन हुआ। अब वह सुपर 30 का हिस्सा बन गया।
बहुत ही सौम्य स्वभाव वाला विद्यासागर खूब मेहनत करता और सभी बच्चों के साथ घुलमिलकर रहता था। आईआईटी प्रवेश-परीक्षा में सफल होने के बावजूद अच्छी ब्रांच के लिए उसने आईआईआईटी इलाहाबाद में एडमिशन ले लिया। वह इनफाॅर्मेशन-टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करके इंजीनियर बना। उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग गई। आज वह अपने माता-पिता का खूब ख्याल रखता है और छोटे भाई-बहन की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठा रहा है। सबसे बड़ी बात, वह अपने गांव में गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोलना चाहता है।
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