चिराग पासवान के बयानों से इन दिनों एनडीए में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। वे अपने पिता रामविलास पासवान के नक्शे कदम पर चलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन, इस बात की संभावना दिख रही है कि वे इसमें गच्चा खा सकते हैं। उनके बयानों से जदयू और भाजपा दोनों असहज महसूस कर रही है। राजनीतिक विश्लेषक के रविशंकर बताते हैं कि रामविलास पासवान राजनीतिक हालातों को भांपने में अक्सर सफल हुए हैं। लेकिन, चिराग अगर पाला बदलते हैं तो यह लोजपा के लिए बड़ा नुकसान होगा। वर्तमान परिस्थितियों से यह साफ लग रहा है कि बिहार में अगली बार भी एनडीए की ही सरकार बनेगी।
'मौसम वैज्ञानिक' हैं रामविलास पासवान
रामविलास पासवान का यह इतिहास रहा है कि वे हर चु्नाव से कुछ महीने पहले यह भांपने में लग जाते हैं कि सत्ता की चाबी किसके हाथ लगने वाली है। 1977 से लेकर 2019 तक के चुनाव को देखा जाए तो ज्यादातर वे सफल ही हुए हैं। यही वजह है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें मौसम वैज्ञानिक की उपाधि दी थी।
चिराग की बयानबाजी: कहीं यह प्रेशर पॉलिटिक्स तो नहीं
पिछले दिनों चिराग के बयानों से जिस तरह समीकरण बदल रहा है उससे तो यही लगता है कि वे अपने पिता के रास्ते चलने की कोशिश में हैं। इसे प्रेशर पॉलिटिक्स का भी हिस्सा माना जा सकता है। एनडीए में हुए असहज स्थिति के पीछे यही वजह है। करीब डेढ़ महीने पहले चिराग ने कहा था कि लोकसभा चुनाव की तरह की विधानसभा चुनाव में भी सीट शेयरिंग होनी चाहिए। इस पर जदयू और भाजपा दोनों चुप थी। लेकिन, चिराग अपनी मांगों पर अड़े थे। जदयू-भाजपा लगातार यह कह रही थी समय आने पर सीट शेयरिंग हो जाएगी।
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि लोजपा नहीं चाहती है कि सीटों का बंटवारा अंतिम वक्त पर हो। ऐसे में अगर लोजपा को कम सीट मिलती है तो उनके पास दूसरा कोई चारा नहीं रहेगा। यही वजह है कि चिराग पहले यह कह रहे थे कि भाजपा-जदयू की जीती हुई सीटों को छोड़कर बाकी 119 सीटों पर हम तैयारी कर रहे हैं। अब चिराग के सुर बदल गए हैं। लोजपा अब सभी सीटों पर तैयारी कर रही है। चिराग ने तो यहां तक कह दिया था कि हम सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ने में सक्षम हैं।
पप्पू यादव से मुलाकात के मायने क्या?
चिराग ने दो दिन पहले देर रात पप्पू यादव से भी मुलाकात की थी। मई में मांझी और पप्पू यादव की भी मुलाकात हुई थी। उस वक्त यह चर्चा थी कि पप्पू यादव एनडीए और महागठबंधन से अलग थर्ड फ्रंट बना सकते हैं। लेकिन, पिछले दिनों मांझी के जदयू के साथ जाने को लेकर हो रही चर्चा के बीच यह ठंडे बस्ते में चला गया। चिराग से हुई मुलाकात के बाद यह मामला फिर तूल पकड़ रहा है कि कहीं थर्ड फ्रंट की तैयारी तो नहीं है। क्योंकि चिराग ने जदयू के खिलाफ तो बयानबाजी की लेकिन, कभी महागठबंधन में जाने की बात नहीं की।
चिराग के लिए बड़ी चुनौती है विधानसभा चुनाव
बिहार विधानसभा चुनाव चिराग पासवान के लिए बड़ी चुनौती है। लोजपा के अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद उन्हें झारखंड और दिल्ली में झटका लग चुका है। पार्टी ने झारखंड में एनडीए से अलग और दिल्ली में साथ लड़ा था लेकिन कहीं जीत नहीं मिली थी। बिहार चुनाव में अगर पार्टी लड़खड़ाती है तो चिराग के नेतृ्त्व पर सवाल खड़े हो जाएंगे।
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