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सीटें चार, लेकिन सबकी नजरें सिर्फ जमुई पर, यहां सियासी विरासत बचाने की जंग, किसानों के मुद्दों पर नहीं उठ रही आवाज https://ift.tt/35wqGjN

पहले चरण के चुनाव में नक्सल प्रभावित जमुई जिला में चार सीटें दांव पर हैं। लेकिन सबकी निगाहें केवल जमुई सीट पर टिकी हुई हैं, क्योंकि यहां लड़ाई राजनीतिक विरासत बचाने की है। हालांकि, बाकी की तीन सीटों पर भी घमासान कम नहीं है। यहां उतरे प्रमुख प्रत्याशियों को एक-दूसरे की चुनौती तो मिल ही रही है, साथ में निर्दलीयों और बागी उम्मीदवारों ने भी उनकी नाक में दम कर रखा है।

इस कारण मुकाबला रोमांचक हो चला है। चारों सीटों पर एक कॉमन बात यह भी सामने आ रही कि कोई भी उम्मीदवार फ्रंट फुट पर नहीं है। इसी कारण साफ नहीं हो पा रहा है कि कौन किस पर भारी पड़ रहा है या पड़ने वाला है? सारे उम्मीदवार बचते-बचाते सावधानी से कदम बढ़ा रहे हैं। वैसे जब भी उन्हें बढ़त बनाने का मौका मिल रहा है, वे चूक भी नहीं रहे हैं। चाहे वो मौका कैसा भी हो?

जिस क्षेत्र में जात-पात का मुद्दा हावी है, वहां प्रत्याशी विकास की बातों के साथ जातिगत कार्ड भी खेल रहे हैं और जहां मतदाता और कार्यकर्ता नाराज दिखाई पड़ रहे हैं, वहां हाथ जोड़कर माफी मांगने में भी देरी नहीं कर रहे हैं। कुछ प्रत्याशियों ने बाकायदा स्टार प्रचारकों के मुंह से भी जनता के सामने कहलवाया कि इन्हें माफ कर दीजिए। अब कोई उपेक्षा नहीं होगी।

चुनावी शोरगुल में कैडर वोटर्स को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर लोग अब प्रत्याशी का विजन नहीं, बल्कि उसकी जात-पात ही देख रहे हैं। जाति का नशा ऐसा कि मूल समस्याओं को भूल चुके हैं। जिले में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के अलावा पिछले तीन साल से एनएच-333ए पर पुल के क्षतिग्रस्त होने से बड़े वाहनों का आवागमन भी बाधित है।

प्रत्याशी का विजन नहीं, बल्कि उसकी जाति ही देख रहे लोग

जमुई जिले के नरियाना घाट पर किऊल नदी पर बना पुल। एनएच 333 ए पर बना यह पुल 13 अप्रैल 2017 में क्षतिग्रस्त हो गया। तबसे बड़े वाहनों के प्रवेश पर रोक है। इसके ठीक एक साल बाद मांगोबंदर के समीप सुखनर नदी पर बने पुल का भी पिलर धंस गया। इन दो पुलों पर घटित दुर्घटनाओं में कई लोगों ने जान गंवा दी। इसके अलावा बरनार, कुंडघाट जलाशय, गरही से सिकंदरा तक सिंचाई कैनाल आदि कई ऐसे मुद्दे हैं जो किसानों से जुड़े हैं, लेकिन इन पर कोई आवाज नहीं उठ रही है।

झाझा: इस सीट पर कुल 10 प्रत्याशी हैं, लेकिन असली मुकाबला राजद और जदयू के बीच है। यहां राजद ने नए चेहरे राजेंद्र यादव पर दांव खेला है। वे पार्टी के पुराने कार्यकर्ता भी हैं। वहीं जदयू ने पूर्व मंत्री दामोदर रावत पर भरोसा जताया है। इधर, भाजपा से टिकट कटने के बाद वर्तमान विधायक डॉ. रविंद्र यादव बागी बने और लोजपा से टिकट लेकर मैदान में हैं। राजद से टिकट न मिलने से नाराज पूर्व प्रत्याशी बिनोद यादव भी बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं। खास यह कि इस सीट पर यादव जाति के तीन उम्मीदवार हैं, इसलिए यादव वोट बंटना तय है। इसका फायदा जदयू को मिल सकता है।

चकाई: यहां मुकाबला त्रिकोणात्मक होने के आसार हैं। राजद प्रत्याशी वर्तमान विधायक सावित्री देवी और जदयू के संजय प्रसाद को निर्दलीय प्रत्याशी सुमित सिंह टक्कर दे रहे हैं। सुमित चकाई का एक बार पहले भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जदयू ने राजद छोड़ आए एमएलसी संजय प्रसाद सिंह पर भरोसा किया है। संजय को जदयू के कैडर वोटर और जातीय समीकरण पर भरोसा है। वहीं सुमित सभी जाति में पैठ होने का दावा कर रहे हैं। सावित्री को 2015 में सहानुभूति वोट मिले थे। पति भाजपा नेता फाल्गुनी प्रसाद यादव के निधन के बाद इन्हें राजद ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग हैं।
जमुई: इस सीट पर भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह व बांका की पूर्व सांसद पुतुल कुमारी की बेटी श्रेयसी सिंह, रालोसपा ने पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र अजय प्रताप और राजद ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव के भाई विजय प्रकाश को मैदान में उतारा है। इस सीट पर तीन तगड़े प्रत्याशी होने के बावजूद कड़े मुकाबले के आसार हैं। श्रेयसी को लोजपा भी समर्थन दे रही है। यहां जाप ने राजद के समीकरण को तोड़ने में पूरी ताकत झोंक रखी है।
सिकंदरा (सुरक्षित): इस विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 15 प्रत्याशी हैं। यहां कांग्रेस के सुधीर कुमार उर्फ बंटी चौधरी को बागी धर्मेंद्र पासवान उर्फ गुरुजी निर्दलीय टक्कर दे रहे हैं। नाराज लोगों से बंटी चौक-चौपाल पर छोटी-छोटी बैठक करके माफी भी मांग रहे हैं। वहीं एनडीए से हम के प्रत्याशी प्रफुल्ल मांझी को जदयू के दो बागी उम्मीदवार सिंधू पासवान और शिवशंकर चौधरी पटखनी देने में लगे हुए हैं। लोजपा उम्मीदवार रविशंकर पासवान को लोजपा के पूर्व प्रत्याशी सुभाष पासवान के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।



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जमुई जिले के नरियाना घाट पर किऊल नदी पर बना पुल। एनएच 333 ए पर बना यह पुल 13 अप्रैल 2017 में क्षतिग्रस्त हो गया।


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