दानापुर का दियारा क्षेत्र...राजधानी पटना और दानापुर शहर के पास हाेकर भी काफी दूर है। हर चुनाव में पुल निर्माण मुद्दा बनता है, नेताओं द्वारा बनाने का आश्वासन मिलता है, लेकिन बाद में भुला दिया जाता है। 1992 में पीपापुल बनने के बाद दियारा के लोगों में उम्मीद की किरण जगी थी। तत्कालीन और उसके बाद की राज्य और केंद्र की सरकारों में शामिल दलों के प्रतिनिधियों द्वारा ग्रामीणों को पक्का पुल बनाए जाने आश्वासन दिया जाता रहा।
लेकिन, पीपापुल बनने के 28 साल बाद भी दियारा के लिए पक्का पुल नहीं बन सका। दियारा की छह पंचायताें की 80 हजार से ज्यादा की आबादी शहर में आने-जाने के लिए साल के ज्यादातर समय नाव पर ही आश्रित रहती है। साल में पांच-छह महीने ही पीपापुल की सुविधा उपलब्ध होती है। हर साल नवंबर या दिसंबर में जुड़ने वाला पीपा पुल जून में खोल दिया जाता है। इसके बाद ग्रामीण इलाकों में स्थित बच्चों के स्कूल भी लगभग बंद हो जाते हैं। रोजी-रोटी, अस्पताल और अन्य कार्यों के लिए शहर जाने का एकमात्र सहारा नाव ही होती है।
ठेकेदाराें की कमाई का जरिया पीपा पुल
लाेगाें का कहना है-करोड़ों खर्च कर हर साल पीपा पुल जाेड़ा जाता है। यह ठेकेदारों की कमाई का जरिया है। अबतक पीपा पुल पर जितना खर्च हुआ उतने में पक्के पुल का निर्माण हाे सकता था। दियारा के लाेग पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। एक प्रमुख समस्या लगातार हो रहा कटाव है। हाल के वर्षों में कई गांव गंगा में विलीन हो चुके हैं। बाढ़ आने पर स्थिति और दयनीय हो जाती है। फसलें डूब जाती हैं और सब्जी की खेती करने वालों को भारी नुकसान होता है। ग्रामीण घर छोड़ दूसरी जगह शरण लेते हैं।
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