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कोरोना का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का नियम तोड़ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सड़कों पर फर्राटा भर रही हैं। लॉकडाउन के बाद बसों का संचालन सोशल डिस्टेंस और मास्क के साथ सैनिटाइजेशन की शर्त पर किया गया था, लेकिन पटना की सड़कों पर हर दिन नियम टूटा। सरकार अपनी शर्तों का ही पालन नहीं करा पाई है। अब जब कोरोना का खतरा बढ़ा तो फिर सरकार का ध्यान फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बसों पर गया है। लॉकडाउन के बाद बसों के संचालन में हुई लापरवाही भारी पड़ सकती है।
कोरोना को मरा मान लेने वालों को अब आई याद
कोरोना का खतरा टला नहीं था। इसी खतरे को लेकर लॉकडाउन किया गया और बसों का संचालन बंद कर दिया गया था, लेकिन बसों का संचालन होते ही सरकार कोरोना को मरा मान ली। इसी बीच जमकर मनमानी की गई। चुनाव से लेकर दीपावली और छठ में बसों में सीटों से अधिक यात्रियों को ढोया गया। बिहार सरकार का ध्यान इस पर तब गया, जब गृह मंत्रालय भारत सरकार ने बसों में कोरोना का खतरा बताया। गुरुवार को गृह सचिव ने आदेश दिया है कि पटना जिला में चलने वाले एवं पटना जिला से अन्य जिलों, राज्यों तथा अन्य जिलों-राज्यों से पटना के लिए चलने वाले सार्वजनिक यात्री वाहनों में यात्रियों की संख्या सीटों की निर्धारित संख्या के 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी।
यहां टूट रहा नियम, गाइडलाइन का पालन नहीं
पटना में 84 पीली बसें चल रही हैं। इसमें कोरोना की गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है। पटना परिवहन विभाग की कुल 450 बसें हैं जिसमें 130 सिटी बसों के रूप में चलाई जाती हैं जबकि अन्य बसें पटना से प्रदेश के अन्य जिलों में चलाई जाती हैं। पटना से 1600 बसें निजी बसें हर दिन चलती हैं। इसके अलावा परिवहन निगम की 4 बसें पटना से दिल्ली के लिए चलती हैं। वहीं पटना में 11 हजार ऑटो को लाइसेंस दिया गया है जबकि इनकी संख्या पटना जिले में 70 हजार बताई जाती है। पटना में 35 हजार ई रिक्शा है जिनका कोई लाइसेंस ही नहीं है। पटना में ग्रीन ऑटो (सीएनजी) की संख्या 1500 का लाइसेंस है।
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