परिवहन मंत्री शीला मंडल से जुड़ा एक वीडियो शुक्रवार को वायरल हुआ। इसमें वे कह रहीं हैं-’... जो वीर कुंवर सिंह हैं, राजपूतों के, हम देख रहे हैं कि उनका हाथ कटा तो उतना वाहवाही हो गया, जो हर किताब में, बच्चा-बच्चा जानता है। लेकिन हमारे शहीद रामफल मंडल, जिन्होंने अपनी जान की बलि दे दी, उनको देश-समाज का जितना सम्मान मिलना चाहिए था, नहीं मिला।
यही दूसरे वर्गों के होते तो इनका सब बाल-बच्चा लोग बड़ा-बड़ा पदाधिकारी होता, बड़ा राजनीतिज्ञ होता। हमेशा से ऐसा है। शास्त्र में भी है-अति पिछड़ों के गुणों को दबाया जाता है और दूसरे वर्ग के कम गुणी को उजागर करके समाज में व्यंजन की तरह परोसा जाता है।’ मंत्री, शहीद रामफल मंडल के आवास (मथुरापुर, बाजपट्टी, सीतामढ़ी) पर एक कार्यक्रम में पहुंची थीं।
रामायण के राम की तरह रामफल के बारे में अपने बच्चों को बताएं
मंत्री ने कहा-शहीद रामफल मंडल के परिवार को देखकर दुख होता है। घर नहीं है। बेटी-पतोहू को देखकर दुख हुआ। इनका तो राईट बनता है। सोचिए, इतनी बड़ी कुर्बानी और ये स्थिति? इनको सम्मान-अधिकार नहीं मिला। … इन्हीं जैसों के बलिदान का फल है कि मेरी जैसी साधारण महिला आज इस स्थिति (मंत्री) में है। 15 साल पहले इनका नाम कोई नहीं जानता था। हमारी सरकार ने डाक टिकट जारी किया।
महिलाएं, अपने बच्चों को रामायण के राम की तरह इनके बारे में भी बताएं। ये भी तो राम ही थे न! हर व्यक्ति में राम है। कोई जरूरी नहीं कि तीर-धनुष होगा, तभी राम कहलाएंगे।’ हालांकि शीला मंडल ने बाद में कहा-’ मेरे दिल में वीर कुंवर सिंह के प्रति असीम श्रद्धा है। मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था। मेरे बयान से किसी की भावना को ठेस पहुंची है तो मैं उसके लिए खेद प्रकट करती हूं।’
सीतामढ़ी में 23 अगस्त 1943 को दी गई थी रामफल मंडल को फांसी
रामफल मंडल को 23 अगस्त 1943 को फांसी दी गई। उन पर 24 अगस्त 1942 को बाजपट्टी चौक पर अंग्रेज सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काट डालने का आरोप था।
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