रविवार काे करगिल युद्ध में विजय की 21वीं वर्षगांठ है। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था। अतिदुर्गम परिस्थितियों में बटालिक सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे से पोस्टों को मुक्त कराया, जो सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था। साथ ही प्वाइंट 4268 और जुबेर ओपी पर भी पुनः कब्जा जमाया। युद्ध के दौरान प्रथम बिहार के एक अधिकारी और आठ जवान शहीद हो गए। प्रथम बिहार को बैटल ऑनर बटालिक और थिएटर ऑनर करगिल का सम्मान दिया गया।
बर्फ और पत्थरों पर रेंगते हुए जख्मी हालत में किसी तरह चलता रहा और अपने साथियों के पास पहुंचा
करगिल युद्ध के दौरान अपनी रेजिमेंट के साथ लेह में तैनात था। 17 मई 1999 को छुट्टी लेकर घर जा रहा था। श्रीनगर पहुंचा ही था कि करगिल में पाक सैनिकों की घुसपैठ और यूनिट के लड़ाई में जाने की जानकारी मिली। छुट्टी रद्द होने पर वापस लौट आया। 21 मई को करगिल के बटालिक सेक्टर में पाक सैनिकों पर हमले और एक पोस्ट पर कब्जा करने का निर्देश मिला। मेजर एम सरवनन के नेतृत्व में गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार और ओमप्रकाश गुप्ता के साथ रेकी पर निकल गया। 27 मई की रात हमला करना था, लेकिन किसी कारण यह टल गया। 28 मई 1999 की रात अपने साथियों के साथ कूच कर गया।
दुश्मन की तरफ से गोले बरसाए जा रहे थे। गोलियों की लगातार बौछार हो रही थी। दुश्मन की स्थिति का सही अंदाजा नहीं लग पा रहा था। लेकिन, साथियों पर देशभक्ति जुनून छाया था। जान की परवाह न कर गोलियों का सामना करते हुए सभी आगे बढ़ते गए। दुश्मन की गोलियों से मेजर सरवनन, नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार और ओमप्रकाश गुप्ता शहीद हो गए पर हम बढ़ते रहे।
पोस्ट के करीब पहुंचे तो दुश्मन सामने दिखा। मैंने एक को मार गिराया। इसी बीच मेरे पैर में दुश्मन की गोली लगी और मैं गिर पड़ा। पर फिर उठा और दुश्मन के दो और जवानों को मार गिराया और उनका हथियार छीन लिया। पैर का जख्म असहनीय होता जा रहा था और बेहोशी-सी छा रही थी। कब बेहोश हो गया पता नहीं चला। होश आया तो खुद को भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच बर्फ में फंसा पाया। पैर में लगी गोली को चाकू से निकाला और खून रोकने के लिए कपड़ा बांध दिया।
पास रहे किट बैग से ड्राई फ्रूट्स और चॉकलेट के सहारे भूख से लड़ता रहा। प्यास लगी तो कपड़े को बर्फ से भीगा दिया और उसे चूसकर गला तर किया। तीन दिन बीत गए। अचानक देखा कि पाक सैनिक करीब पहुंच गए हैं। उन्हें देख अपनी मशीनगन से गोलियों की बौछार कर दी और पाकिस्तानी सैनिक अब्दुल्ला अयूब को मार गिराया। थोड़ी हिम्मत बढ़ी तो वापस अपने कैंप में लौटने के बारे में सोचने लगा। बर्फ और पत्थरों पर रेंगते हुए 11 दिन तक जख्मी हालत में किसी तरह चलता रहा। हिम्मत जवाब देने लगा था। पर किसी तरह चार किलोमीटर की दूरी तय की और आखिर में अपने साथियों के पास पहुंच गया। साथी मुझे शहीद मान चुके के थे।
शहीदों की पहली सूची में मेरे नाम की घोषणा कर दी गई थी। अचानक सामने देख मेरे सभी साथी उछल पड़े। उन्हें सहसा यकीन ही नहीं हो रहा था। मेरे लौट आने पर सभी के चेहरों पर थोड़ी खुशी दिखी पर अधिकारी और अन्य साथियों को खो देने का गम उससे कहीं ज्यादा था। साथियों ने बताया कि पोस्ट को दुश्मन के कब्जे से मुक्त करा लिया गया था। मुझे हेलीकाप्टर से अस्पताल पहुंचाया गया।
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