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लॉकडाउन के चलते रोजी रोटी बंद हुई तो घर लौटे, अब पेट की आग वापस ले गई अपनों से दूर https://ift.tt/3e1RXwC

सरकार की तरफ से जारी किए गए एक आंकड़े के मुताबिक देश भर से करीब 32 लाख लोग लॉकडाउन में बिहार लौटे। इनमें ज्यादातर मजदूर हैं जो काम की तलाश में दूसरे प्रदेश गए थे। लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्रियां बंद हो गई और रोजगार छीन गया। जब पेट पर आफत आई तब लोग बिहार लौटने लगे। 22 लाख लोग श्रमिक स्पेशल ट्रेन और बाकी बस, साइकिल और पैदल ही घर लौटे। लॉकडाउन के दौरान सरकार और संस्थाओं की मदद से किसी तरह घर चल गया लेकिन अब बड़ी मुसीबत आन पड़ी है।

हर रोज बिहार से हजारों की संख्या में लोग दूसरे प्रदेश जा रहे हैं। रोजगार के लिए लोग पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु समेत दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं। ज्यादातर मजदूरों का यही कहना है कि यहां रहे तो भूखों मरने की नौबत आएगी और बाहर जाने पर कोरोना का खतरा है। लेकिन परिवार का पेट पालने के लिए कोरोना का खतरा मोल लेते हुए बाहर जाना पड़ रहा है।

...दिनभर कुदाल चलाने के बाद दो सौ मिलते हैं, इतने में घर कैसे चलेगा इसलिए वापस लौट आया
तेलंगाना में राइस मिल में मजदूरी करने वाले गोपाल राय ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान मैं ट्रक से बिहार आया था। जो जमापूंजी थी वह ट्रक ड्राइवर को किराया देने में खर्च हो गए। किसी तरह घर पहुंच गया। मैं अप्रैल में ही कटिहार स्थित अपने घर आया था। कुछ दिन घर में बैठकर खाया, लेकिन ऐसा कब तक मुमकिन था। आसपास काम की तलाश की, लेकिन ढंग का काम नहीं मिला। सरकार मनरेगा में काम तो देती है लेकिन दिन भर कुदाल चलाने पर 200 रुपए मिलते हैं। इतने से कैसे घर चलेगा। इसलिए मजबूर होकर 27 मई को तेलंगाना वापस लौट आया। कंपनी ने मेरे अकाउंट में दो हजार रुपए भेजे थे। डेढ़ महीने से ज्यादा वक्त बिहार में रहा लेकिन कोई रोजगार नहीं मिला।


दिल्ली के एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने वाले पूर्णिया के सोनू ने बताया कि जब खाना खत्म हो गया और भूखों मरने की नौबत आ गई तब लॉकडाउन के दौरान ही पत्नी और चार बच्चों के साथ पैदल घर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में यूपी सरकार ने मदद की और बस से बिहार बॉर्डर पर लाकर छोड़ दिया। लॉकडाउन में जिस तरह के हालात झेले उस दौरान यह सोच लिया था कि अब वापस नहीं लौटेंगे। लेकिन, यहां तो और भी बदतर स्थिति है। दिल्ली में 16 हजार रुपए कमाते थे। यहां काम किया तो 5 हजार से ज्यादा रुपए नहीं मिलेंगे। ऐसे में पूरा परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे। तीन दिन बाद वापस दिल्ली लौट रहा हूं। अभी सिर्फ मैं जा रहा हूं। परिवार को ले जाने लायक स्थिति नहीं है।

पूर्णिया में जीविका समूह में मास्क बनाने का काम कर रही ममता ने बताया कि मैं और मेरे पति दिल्ली में दर्जी का काम करते थे। दोनों मिलाकर महीने के 25 हजार रुपए कमा लेते थे। कोरोना की मार में रोजगार छिन गया और वापस गांव लौटना पड़ा। अच्छी बात ये रही कि क्वारैंटाइन में रहने के बाद मास्क बनाने का काम मिल गया। अभी छह हजार रुपए मिल रहा है। लेकिन, जब हालात सुधरे तो वापस दिल्ली लौटना पड़ेगा, क्योंकि इतने पैसे में बच्चों का पालन पोषण और सास-ससुर का खर्च उठाना मु्श्किल है। पति अभी काम की तलाश कर रहे हैं।

सरकार दे रही मिट्टी काटने का काम
कटिहार के रमेश कुमार ने कहा कि मैं गुजरात में एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करता था। क्वारैंटाइन में रहने के बाद कहा गया था कि मुझे काम दिया जाएगा। मैंने इसके लिए रजिस्ट्रेशन भी कराया था। मुझे मनरेगा में काम मिला। मिट्टी काटने का काम था। मैंने कभी कुदाल चलाई नहीं, जिसके चलते मुझसे नहीं हो सका। प्रधानमंत्री आवास योजना और शौचालय योजना में भी काम मिल रहा है। अभी तो किसी तरह काम कर रहा हूं, लेकिन जल्द ही वापस गुजरात जाऊंगा।



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पिछले दिनों पूर्णिया से की मजदूर पंजाब से आई एक बस से वापस लौट गए।


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