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गरीबी के चलते पिता ढंग से पढ़ भी न सके, अब बेटा बना डॉक्टर https://ift.tt/2FZXrfY

रामप्रवेश सिंह पढ़ाई में खूब मन लगा रहे थे। उन्हें अपने पिता का सपना जो पूरा करना था। पिता भूमिहीन किसान थे। गांव में अगर कुछ काम मिलता तब घर का चूल्हा जलता था वरना भूखे पेट सोना जैसे उनके परिवार की आदत बन गई थी। एक दिन पिता बहुत बीमार पड़ गए। ईलाज के लिए पैसे नहीं थे। परिवार को बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। उसी दरम्यान पिता ने बोला कि बेटा रामप्रवेश, चाहे जो हो जाए तुम्हें मेरा एक सपना पूरा करना है। बेटा तुम्हें डॉक्टर बनना है।

डॉक्टर बनकर गरीबों का मुफ्त में इलाज करना। और फिर क्या सुविधाएं नहीं होने के बावजूद उसी दिन से रामप्रवेश सिंह ने ठान लिया कि उन्हें अब हर हाल में डॉक्टर ही बनना है। उन्होंने खूब पढ़ाई की लेकिन, निर्धनता इस कदर हावी थी कि पढ़ाई के लिए गांव से बाहर जाना संभव ही नहीं हो सका। राम प्रवेश को अपने पिता की बातें याद आतीं थीं कि बेटा तुम्हें डॉक्टर बनना है लेकिन, मन मसोस कर रहना पड़ता था। फिर उन्होंने फैसला लिया कि हर हाल में डॉक्टर तो बनाना ही है।

होम्योपैथी इलाज से संबंधित कुछ किताबें ले ली और खूब अध्ययन किया। होम्योपैथी का ज्ञान उन्हें अच्छा हो गया। फिर क्या उन्होंने गरीबों का इलाज शुरू कर दिया। दूर-दूर के गांव से लोग आने लगे। अगर कोई पैसा दे देता तो ठीक वरना निःशुल्क ही इलाज कर दिया करते थे। जो थोड़ी आमदनी होती थी उससे मुश्किल से घर का खर्चा चलता था।

कुछ दिनों के बाद उनकी शादी हो गई और तीन बच्चे भी हो गए। बेटा राहुल का झुकाव पढ़ाई के प्रति देखकर उनके मन में ये ख्याल आया कि बेटे को मेडिकल की पढ़ाई करवाएंगे और उसे बड़ा डॉक्टर बनाएंगे। अब रामप्रवेश ने अपने पिता का सपना बेटे के जरिए ही पूरा करने का सोचा।
धनाभाव के चलते राहुल की पढ़ाई सरकारी स्कूल से ही शुरू हुई। जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा था, अपने पिता के सपने के बारे में समझ रहा था। दसवीं बोर्ड का जब रिजल्ट आया तब राहुल के घर में खुशियों का ठिकाना नहीं था। माता-पिता बहुत खुश थे। राहुल की प्रतिभा को देखकर गांव के कुछ लोगों ने मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी करने के ख्याल से उसे आगे की पढ़ाई के लिए कोटा, दिल्ली या कम से कम पटना जाने की सलाह दी। पिता के पास पैसे तो थे नहीं।

बहुत प्रयासों के बावजूद असफलता ही हाथ लगी लेकिन, परिवार ने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा। एक दिन राहुल ने किसी अखबार में सुपर 30 के बारे में पढ़ा। पिता से कहा कि कोई बात नहीं मैं अब इंजीनियर ही बनूंगा। राहुल के प्रदर्शन को देखकर मैं बहुत ही प्रभावित हुआ और उसे सुपर 30 में शामिल कर लिया |
एक दिन राहुल बहुत उदास बैठा था। जब मैंने उसकी उदासी का कारण पूछा तब उसने अपनी पूरी कहानी विस्तार से बताई। मैंने कहा कोई बात नहीं। तुम सुपर 30 में एक नया इतिहास बनाओगे। आज से तुम अपने स्तर से बायोलॉजी भी पढ़ना शुरू कर दो और आईआईटी प्रवेश-परीक्षा की तैयारी तो तुम मेरे साथ कर ही रहे हो। फिर क्या राहुल ने अपनी पूरी ताकत झोक दी। रात-दिन पढ़ाई, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई करने लगा।

कुछ दिनों के बाद जब रिजल्ट आया तब वह इंजीनियरिंग और मेडिकल दोनों ही परीक्षाओं में सफलता हासिल कर चुका था लेकिन, उसे तो अपने दादा और पिता का सपना पूरा करना था। इसलिए उसने डॉक्टर बनने के उद्देश्य से नालंदा मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई शुरू कर दी। अब उसका आखिरी साल है। मुझे पूरा विश्वास है कि वह पढ़ाई पूरी करके गरीबों का इलाज करेगा और अपने दादा और पिता के सपनों में रंग भर देगा।



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Due to poverty, the father could not even study properly, now the son becomes a doctor


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