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विधानसभा चुनाव में दहाई अंक पर भी नहीं पहुंच पा रहे वामदल, 2015 में भाकपा और माकपा का खाता नहीं खुला https://ift.tt/3hMIDyC

भाकपा, माकपा और भाकपा माले तीनों मिल कर भी पिछले तीन विधान सभा चुनाव में विधायकों की संख्या दहाई अंक नहीं पहुंचा पा रहे। तीनों दल मिल कर संयुक्त प्रत्याशी भी उतारते रहे हैं, लेकिन जीत दूर ही रही। 2005 में भाकपा माले को 5, भाकपा को 3 और माकपा को एक सीट पर जीत मिली थी। पिछले दो चुनाव से माकपा तो लगातार शून्य पर आउट हो रही है। 2010 में भाकपा माले का खाता भी नहीं खुला। भाकपा को 1 सीट मिली। 2015 में भाकपा माले को 3 सीट मिली, जबकि भाकपा और माकपा का खाता नहीं खुला।
2000 के पहले भाकपा का राज्य में काफी अच्छी स्थिति थी। 1990 में भाकपा को 24 सीटों पर जीत मिली। 1995 में फिर शानदार सफलता के साथ 26 सीटें मिली। 2000 में 5 सीटों में 3 सीटें झारखंड की थी। 2005 में विधानसभा में भाकपा के 3 प्रतिनिधि थे। 2000 में भाकपा माले को 7 सीट और माकपा को 2 सीट मिली थी।

सीटों के तालमेल पर राजद से तीनों दलों के नेताओं की बात
2015 में वोट प्रतिशत घटकर 3.5 प्रतिशत रह गया। इसमें भाकपा माले को 1.78 प्रतिशत, भाकपा को 1.69 प्रतिशत और माकपा को 0.78 प्रतिशत वोट मिले। भाकपा माले पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेंद्र झा कहते हैं कि हमने गरीबों, मजदूरों, किसानों और युवाओं की आवाज लगातार उठाई है। भले चुनाव में हम पिछड़े। आने वाले समय में हमारी बेहतर स्थिति होगी। माकपा के राज्य सचिव अवधेश कुमार के अनुसार ध्रुवीकरण के कारण वामदल पिछड़ रहे हैं। इस चुनाव में लोग एनडीए के खिलाफ हैं। वामदलों की स्थिति निश्चित ही सुधरेगी।



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Left parties not able to reach double digits in assembly elections, CPI and CPI-M account not opened in 2015


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