कोरोना के कारण बीते छह माह से स्कूल बंद हैं। दोस्तों के साथ धमा-चौकड़ी मचाने वाले, स्कूल के अनुशासन में रहने वाले, एक रूटीन लाइफ जीने वाले बच्चे घरों में हैं। स्कूल से इतनी लंबी छुट्टी से बच्चों का मजा ही किरकिरा हो गया। बड़ी परेशानी कोराना संक्रमण की है।
दैनिक भास्कर ने स्कूली बच्चों पर सर्वे किया तो पाया कि कक्षा 9 ही नहीं, कक्षा 6 से 12 तक के अधिकांश बच्चे घरों में बोर हो चुके हैं और इनमें से आधा से अधिक अब स्कूल जाना चाहते हैं। घरों में रहते हुए वे चिड़चिड़े भी हुए हैं और उनके पढ़ने-लिखने का रूटीन गड़बड़ हो गया है।
ऑनलाइन क्लास में पहले तो बच्चों को मजा आया, लेकिन अब इसे मजबूरी का सौदा मान रहे हैं। 30% बच्चों को तो ऑनलाइन कुछ समझ में ही नहीं आता, बस यस सर...नो मैम ही कहते रहते हैं। सेल्फ स्टडी से तो बच्चों ने एक प्रकार से किनारा ही कर लिया है। उनकी नींद भी डिस्टर्ब हो गई है और घर में रहते-रहते वे आलसी भी हो गए हैं। उनका व्यवहार नॉर्मल नहीं रहा।
इस सब के बीच पेरेंट्स की चिंतित है कि कहीं उनके बच्चे का साल न बर्बाद हो जाए। इसके बावजूद सर्वे में शामिल एक-तिहाई पेरेंट्स ही चाहते हैं कि स्कूल खुलें, क्योंकि मन में कोरोना संक्रमण का डर समाया हुआ है।
स्कूल न जाने से बच्चों में डिप्रेशन बढ़ा, सही तरह से न संभाला गया तो ये खतरनाक
स्कूल बंद, पढ़ने पढ़ाने की शैली, परीक्षाओं के तरीके में परिवर्तन। इन सभी परिवर्तनों ने बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला है।
एक्सपर्ट पैनल सर्वे एनालिसिस करने वाली टीम
- वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. निगम प्रकाश नारायण
- पीएमसीएच शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एके जायसवाल
- एनएमसीएच शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद सिंह
- एम्स के शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. लोकेश तिवारी
- आईजीआईएमएस की चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट प्रियंका
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