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60 साल में मिला तो बस वोट डालने के लिए आधार कार्ड, नहीं मिल सका नल-जल, उज्ज्वला या आवास योजना का लाभ https://ift.tt/3kvxCDU

(कृष्ण बल्लभ नारायण). 1960 के दशक में भागलपुर में 2 रिफ्यूजी कैम्प बनाये गए थे, जिसमें एक बरारी में तो दूसरा डीआईजी कोठी के पीछे बड़ी खंजरपुर में है। इसी खंजरपुर वाली रिफ्यूजी कॉलोनी में बसे लगभग 500 परिवार मौजूदा स्थिति में भी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं से महरूम हैं। ये सभी मुख्य तौर पर मछुआरे हैं और मछली मार कर अपना जीवनयापन करते हैं।

धूल फांक रही है नल-जल योजना

बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजना के अंतर्गत जल-नल योजना है, जिसके द्वारा घर-घर जल पहुंचाने का कार्य था। लेकिन आलम यह है कि जल-नल की अधूरी योजना लोगों के मुंह चिढ़ाने का काम कर रही है। इस संबंध में यहां के निवासी रमेश और नीलू राजवंशी का कहना है कि सरकार की जल-नल योजना यहां फेल है। आलम यह है कि एक साल से नल लगा हुआ है लेकिन अब तक उसमें एक बूंद पानी नही आया।

नल तो आ गया लेकिन अब तक उसमें एक बूंद पानी नही आया।

यहीं रहनेवाले सपन वर्मन ने बताया कि जल-नल का काम वुडको कम्पनी ने लिया था लेकिन एक सीमित समय के बाद उसका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया। तब से जल-नल योजना सिर्फ भाषणों और कागजों तक सिमट कर रह गया है।

नगर निगम के सप्लाई पानी से चलता है काम

यहां के निवासियों का कहना है कि हमलोगों का काम नगर निगम के सप्लाई से चल जाता है। लेकिन दिक्कत तब हो जाती है जब गंगा नदी में जलस्तर कम हो जाता है। उस स्थिति में नगर निगम का पानी पीने लायक नही रह जाता है।

इसी सप्लाई के पानी से कैंप के लोग अपना काम चलाते हैं।

नहीं मिला उज्ज्वला और आवास योजना का लाभ

पांच दशकों से भी अधिक समय से यहां रहने के बावजूद अब तक सरकार की आवास और अन्य योजनाएं भी इनलोगों की पहुंच से कोसों दूर है। 75 वर्षीय पुतुल दास का कहना है कि हम यहां एक जमाने से रह रहे हैं लेकिन अब तक न तो आवास योजना का लाभ मिला और न ही प्रधानमंत्री के उज्ज्वला योजना का।

सपन वर्मन इलाके के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।

पढ़ाई और रोजगार की समस्या

सपन वर्मन का कहना है कि यहां काफी जद्दोजहद के बाद एक प्राथमिक विद्यालय बन पाया। इसके बाद आगे पढ़ने के लिए बच्चों को डेढ़ से दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। बड़ी दिक्कतों से मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया है। आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को अब भी यहां से लगभग दो किलोमीटर दूर या तो बरारी जाना होता है या घंटाघर। सरकार या जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि यहां आसपास में मध्य और उच्च विद्यालय बनवाएं।

मछली मारकर अपना जीवनयापन करने वाले इन लोगों के रोजगार पर भी अब संकट है। वर्मन के अनुसार वहां भी अपराधियों का बोलबाला हो गया है जिस वजह से मछली मारना भी एक कठिन कार्य हो गया है।

कुल मिलाकर रिफ्यूजी कैम्प के लोगों का कहना है कि हमारे पास आधार और वोटर आई कार्ड तो है लेकिन सिर्फ वोट डालने के लिए, न कि किसी सरकारी योजना का लाभ पाने के लिए। अब देखना यब होगा कि चुनाव के इस माहौल में भी कोई जन प्रतिनिधि इनके हक की बात करेंगे या फिर ये लोग यूं ही राजनीतिक वादों का शिकार होते रहेंगे।



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इस तस्वीर से रिफ्यूजी कैंप की दशा की बस एक झलक मिलती है।


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