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नालंदा में दोनों तरफ लंगड़ीमारी, इसके केंद्र में सत्ता से बेदखली या बरकरारी https://ift.tt/2Gn5YdE

(मधुरेश) यहां कई कंट्रास्ट हैं। हर स्तर पर। तरह-तरह के। संतुष्टि/पूर्णता और उम्मीद/अपेक्षाओं का कंट्रास्ट; बड़ी बिल्डिंग और उसमें उस हिसाब से इंतजाम न होने का कंट्रास्ट; बदलाव के बहुत बोलते रंगीन सपने और जंगलराज की वापसी के चुप्पा खौफ का कंट्रास्ट; खेतों में धान काटते वोटर और सड़क पर वोट काटते नेता का कंट्रास्ट; निश्चिंतता और डर का कंट्रास्ट; खुली बगावत और गोद में बैठकर दुश्मनी का कंट्रास्ट; नेता की शातिर चालाकी और पब्लिक के व्यावहारिक ज्ञान का कंट्रास्ट, तो सात्विक ज्ञान की भूमि पर पुरजोर राजनीतिक लंगड़ीमारी का भी कंट्रास्ट।

यहां का चुनाव, दरअसल लंगड़ीमार कोख से साबूत जीत निकालने की गलाकाट कवायद का कंट्रास्ट है। नेताओं ने अपने कारनामों से ‘मालिक जनता’ को बहुत घचपचाया-गड्‌डमड्‌ड हुआ टास्क सौंपा। ‘मालिक’, माकूल फैसला देने को तैयार है। लंगड़ीमारी, दोनों तरफ से है। मजे की। इसके केंद्र में सत्ता को पलटना या इसकी बरकरारी है।

लोजपा ने तो चुन-चुनकर जदयू व भाजपा के बागियों को टिकट दिए। कांग्रेस ने राजगीर में यही किया। मगर कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों को लेकर इलाके में कई तरह की चर्चा मिली। और सबमें यह लाइन कॉमन कि कम से कम दो सीटों (नालंदा, हरनौत) पर जदयू, कांग्रेसी उम्मीदवारों को अपने लिए बड़ी सहूलियत प्रदान करने वाला माने हुए है।

चर्चा में यह स्थिति, जदयू की लंगड़ीमारी मानी गई है। उम्मीदवारी के मामले में एनडीए के सामने विपक्ष की ऐसी मोर्चाबंदी कि एनडीए के खाते में जाने वाले वोट छितरा जाएं। इतने के बावजूद विपक्ष की बड़ी कामयाबी यही होगी कि जिले में जीत के मोर्चे पर उसे इंट्री मिलती है कि नहीं? यह आसान नहीं है। हां, सत्ता पक्ष के भी पाले में कहीं-कहीं बहुत डर है।

इसकी खास वजह पीढ़ियों की समझ के फर्क को लेकर पनपा स्वाभाविक संदेह है। बहुत सारे घरों में लोग, नई पीढ़ी के मुकाबिल हैं। ऐसे लोगों को अपने मन की करने, यानी अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देने के लिए खुद बेहद सक्रिय रहना पड़ेगा। सबने अपने हिसाब से जीत के फुलप्रूफ इंतजाम किए हैं। तरह-तरह के इंटरनल पैक्ट।

मसलन, बिहारशरीफ में भाजपा के डॉ.सुनील कुमार को कुर्मी जाति का वोट इसी शर्त पर मिलना है कि नालंदा के कुशवाहा (कोईरी) श्रवण कुमार को वोट देंगे। डॉ. सुनील कुशवाहा हैं। श्रवण कुर्मी हैं। खैर, तीन शब्दों ‘ना+अलम्+दान’ से बना नालंदा, अपने शाब्दिक अर्थ में अनंत दान देने वाला रहा है। देता ही रहा है। ख्यात मगध सम्राट जरासंध इस क्रम के सबसे बड़े ऐतिहासिक-पौराणिक पात्र हैं। मगर अबकी नालंदा का ‘वोट दान’, बहुत तल्ख और लंगड़ीमार राजनीतिक मोड में परखा जाएगा।

7 सीटों का अंतिम हाल, वोटरों का मूड देखिए-जानिए

नालंदा
कौशलेंद्र (छोटे मुखिया) को किसी पार्टी की ताकत मिली होती, तो यहां के विधायक व ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार और ज्यादा मुश्किल झेलते। छोटे मुखिया, भाजपा के बागी हैं। मैदान में अपने बूते हैं। निर्दलीय। उनसे मिल रही परेशानी को श्रवण ने, कांग्रेस के गुंजन पटेल से बैलेंस किया हुआ है।

हरनौत
जदयू के दो बागियों की मौजूदगी के बावजूद हरिनारायण सिंह (जदयू) का पाला, कांग्रेसी प्रत्याशी कुंदन गुप्ता को अपना बड़ा सुकून माने हुए है। यह सोचकर कि कुंदन को मिलने वाले वोट, लोजपा की ममता देवी से होने वाली मुश्किल को कम करेगी। ममता देवी, जदयू की बागी हैं।

इस्लामपुर
यहां एनडीए (जदयू) और महागठबंधन (राजद) के उम्मीदवारों के बीच ही जीत-हार तय होगी। जदयू के चंद्रसेन प्रसाद तथा राजद के राकेश कुमार रौशन मैदान में हैं। यहां वामपंथी असरदार रहे हैं। इसका भी फायदा राकेश को है। उनके पिता कृष्णबल्लभ यादव यहां से दो बार विधायक रहे।

हिलसा
पिछली बार अत्रि मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव की जीत के मूल में जदयू-राजद गठबंधन था। अबकी जदयू ने कृष्ण मुरारी शरण उर्फ प्रेम मुखिया को टिकट दिया है। अब दोनों के सामाजिक आधार बिल्कुल आमने-सामने हैं। कुमार सुमन सिंह उर्फ रंजीत सिंह लोजपा के उम्मीदवार हैं।

अस्थावां
अबकी जदयू में डॉ.जीतेंद्र प्रसाद की उम्मीदवारी का खासा विरोध हुआ। इकट्‌ठे 34 नेताओं ने इस्तीफा दिया। एक बागी अनिल कुमार तो राजद उम्मीदवार के रूप में उनके बिल्कुल सामने हैं। दूसरे बागी विपिन कुमार हैं। लोजपा से रमेश कुमार हैं। इन सबके बावजूद डॉ.जीतेंद्र निश्चिंत से भी हैं।

बिहारशरीफ
अबकी राजद ने सुनील कुमार को टिकट देकर भाजपा को सकते डाल दिया। यह दरअसल, भाजपा के सामाजिक आधार में सीधी घुसपैठ रही। खैर, उनके बिल्कुल सामने भाजपा के डॉ.सुनील कुमार हैं। विधायक रहे पप्पू खां की पत्नी आफरीन सुल्ताना फिर मैदान में हैं। निर्दलीय।

राजगीर
जदयू के कौशल किशोर, जदयू के बागी व कांग्रेसी उम्मीदवार रवि ज्योति कुमार से जितने तबाह हैं, कमोबेश उनकी उतनी ही आस लोजपा की मंजू देवी है। मंजू देवी, भाजपा की बागी हैं। कौशल, एसएन आर्या के पुत्र हैं, जो 8 बार यहां से विधायक रहे। यदि मंजू अपनी जाति के वोटों के साथ पार्टी के आधार मतों को लेने में सफल रहीं, तो जदयू की राह आसान हो जाएगी। वैसे कांग्रेस और लोजपा, वोटरों को यह बताने की होड़ में मजे में उलझी रही है कि वही जदयू उम्मीदवार को हरा रही है। यह स्थिति जदयू के बड़ी राहत है।



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नालंदा विश्वविद्यालय, (फाइल फोटो)


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