जहांगीर का इतिहास
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अकबर के स्थान पर उसके बेटे सलीम ने तख्तोताज को संभाला, जिसने जहांगीर की उपाधि पाई, जिसका अर्थ होता है दुनिया का विजेता. अकबर का जन्म 30 अगस्त 1569 ई में हुआ था. अकबर ने सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के नाम पर अपने बेटे का नाम सलीम रखा था. जहांगीर को न्याय की जंजीर के लिए भी याद किया जाता है.ताज्जुब की बात है कि जिसकी रगों में तैमूरी, चंगेज़ी और राजपूती खून दौड़ रहा हो, जो बाबर और अकबर का वंशज हो, वह सिर्फ नाम का ‘जहांगीर’ था!
अकबर का उत्तराधिकारी सलीम था.अकबर के स्थान पर उसके बेटे सलीम ने तख्तोताज संभाला, जिसने जहांगीर की उपाधि पाई. जहांगीर का अर्थ होता है दुनिया का विजेता. उसने कांगड़ा और किश्वर के अतिरिक्त अपने राज्य का विस्तार किया और मुगल साम्राज्य में बंगाल को भी शामिल कर दिया. जहांगीर को न्याय की जंजीर के लिए भी याद किया जाता है|
सल्तनत-ए-हिंदुस्तान में अकबर के इंतेकाल का मातम सात दिन चला. आठवें दिन यानी 24 अक्टूबर, 1605 को आगरा दरबार में सलीम के नाम की नौबत बज उठी. इन्हीं दिनों के आसपास तुर्की में भी सलीम नाम का शासक था. ‘सलीम’ नाम को लेकर दुनिया और इतिहास में पशोपेश न हो, इसलिए मुग़ल सलीम ने खुद के ‘जहांगीर’ होने का ऐलान करवा दिया. ‘जहांगीर’ यानी दुनिया को जीतने वाला.
हालांकि सब इस बात से मुतमइन नहीं. चर्चित पत्रकार शाज़ी ज़मां अपनी किताब ‘अकबर’ लिखते हैं कि सलीम को हिंदुस्तान के पीरों और फ़कीरों ने कभी बताया था कि बादशाह अकबर के गुज़र जाने के बाद नूरुद्दीन नाम का शख्स सुल्तान बनेगा, सो सलीम ने अपना नाम नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह रख लिया.जो भी है, सलीम के खाते में ऐसी कोई अहम लड़ाई या ऐसा कोई अहम वाक़या दर्ज़ नहीं है, जो उसके नाम की गवाही देती हो. ताज्जुब की बात है, जिसकी रगों में तैमूरी, चंगेज़ी और राजपूती खून दौड़ रहा हो, जो बाबर और अकबर का वंशज हो, वह सिर्फ नाम का ‘जहांगीर’ था!
सलीम के पैदा होने का क़िस्सा मुग़ल इतिहास में बड़े चाव से लिखा जाता है. सलीम बादशाह अकबर और अमर के राजा भारमल की बेटी की संतान था. कोई उसका नाम जोधा बोलता है, तो कोई हीरकंवर. कुछ लोग उसे आमेर का न होकर जोधपुर का बताते हैं. इससे याद आता है कि कुछ साल पहले ‘जोधा अकबर’ फ़िल्म में जोधा को अकबर की पत्नी बताने पर विवाद हुआ था. सोचना दिलचस्प है कि जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब की रगों में राजपूती खून भी था. फिर राजपूतों को मुग़लों के नाम से परहेज़ क्यूं? उन्हें तो फ़क्र होना चाहिए कि उस दौर के भौगौलिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक हिंदुस्तान में राजपूत और मुग़ल दोनों ही बराबर के हिस्सेदार रहे हैं और गौरवशाली मुग़ल काल पर उनका भी आधा अधिकार है.
वापस अपनी बात पर आते हैं. जब रानी गर्भवतीं हुईं तो अकबर ने उन्हें फतेहपुर सीकरी के शेख़ सलीम चिश्ती के दरबार में रहने के लिए भिजवा दिया. अकबर की ख्वाहिश थी कि तैमूर का वंशज चिश्ती के साए में ही दुनिया में आये. बताते हैं कि शेख़ सलीम चिश्ती ने अकबर को तीन बेटे होने का वरदान दिया था. इस पर अकबर ने कहा कि वे पहला बेटा शेख़ की सरपरस्ती में देंगे. लिहाज़ा, जहांगीर के शुरुआती नाम ‘शेखू’ और ‘सलीम’ के चिश्ती के ही नामों पर धरे गए थे.
जहांगीर जिस तख़्त पर बैठा, वह बाबर, हुमायूं और अकबर के जीवन भर की लड़ाइयों का नतीजा था. मेवाड़ और दक्कन के कुछ इलाकों के अलावा अकबर ने पूरे हिंदुस्तान को एक धागे में पिरो दिया था. जहांगीर ने मेवाड़ को इसमें मिलाया पर इस का भी सूत्रधार शाहजहां था. कहते हैं कि जहांगीर न तो महत्वाकांक्षी था और न ही उसमें कोई ख़ास जीवट था.उसके जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में शासन की बागडोर नूरजहां के हाथों में आ गई थी.
जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ के मुताबिक़ जहांगीर और शाहजहां अकबर की श्रेणी के शासक नहीं थे. पर वे दोनों इसलिए शासन कर पाए क्योंकि उन्होंने अकबर द्वारा स्थापित राजकीय और सामाजिक ढांचे को बरकरार रखा था. नेहरू के मुताबिक़ अकबर ने इस ढांचे को इतनी ख़ूबी से खड़ा किया था कि उसके जाने के 100 साल बाद तक हिंदुस्तान को कोई विशेष दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा.
तो सवाल उठता है कि फिर जहांगीर को इतिहासकार महान मुग़लों की श्रेणी में क्यों रखते हैं? शायद इसलिए कि वह कला का पारखी था जो उसके काल में ऊंचे स्तर पर पंहुची. शायद इसलिए भी कि कुछ इतिहासकार उसे सबसे सहिष्णु मुग़ल मानते हैं. जहांगीर जिज्ञासु प्रवत्ति का शहंशाह था. उसे पक्षियों, जानवरों और विज्ञान से बेहद लगाव था और इसका ज़िक्र ‘जहांगीरनामा’ में मिलता है. उसके शासनकाल में लिखी गयी यह किताब उसके जीवन की आम से आम घटनाओं का दिन-ब-दिन बयान करती है.
इतिहासकार बैम्बर गोइस्कोन ‘दा ग्रेट मुग़ल्स’ में लिखते हैं कि जहांगीर को क्रूरता देखने में आनंद मिलता था. अपराधियों को हाथियों द्वारा कुचलवाना उसका पसंदीदा नज़ारा था. एक बार किसी मुलाज़िम के हाथों चीनी मिट्टी का कप टूट गया. जहांगीर ने उसे चीन जाकर नया लाने का हुक्म सुना दिया! इससे ज़ाहिर होता है कि जहांगीर के मिज़ाज में कुछ सैडिस्ट भाव भी था. हालांकि गोइस्कोन यह भी लिखते हैं कि मुग़लों की क्रूरता अन्य मुसलमान शासकों या यूरोप के राजाओं से कमतर थी.
जहांगीर के शासन के शुरुआती 17 साल शांति से गुज़रे. सिर्फ उसके बेटे बाग़ी ख़ुसरो ने ज़रूर उसे कुछ दिक्कतें दी थीं पर जहांगीर ने उसकी बग़ावत को हर बार कुचल दिया. आख़िरी बार तो उसने ख़ुसरो को लगभग अंधा ही कर दिया था. इसी दौरान मेहरुन्निसा उर्फ़ नूरजहां उसकी ज़िंदगी में आई.नूरजहां की जहांगीर की मुलाकात भी एक दिलचस्प क़िस्सा है. इसके कई संस्करण हैं. कुछ कहते हैं कि जहांगीर ने एक बार उसे कहीं देख लिया और दिल दे बैठा. इकतरफ़ा इश्क़ में गिरफ़्तार उसने उसके शौहर को मरवा दिया. वहीं दूसरी तरफ कुछ इतिहासकार लिखते हैं कि अकबर के कहने पर अबुल फ़ज़ल ने नूरजहां के पिता ग्यासबेग से उसका निकाह लाहौर जाकर किसी और से करने को कहा. इस प्रकार इराक का अली कुली बेग इस्तज़ुलु उसका शोहर हुआ. जब जहांगीर शहंशाह बना, उसने अली कुली बेग को बंगाल भेज दिया जहां किसी जंग में वह मारा गया. इसके बाद नूरजहां आगरा चली आई और 1611 को ईरानियों के उत्सव नौरोज़ में उसकी जहांगीर से मुलाकात हुई.
1616 में हिंदुस्तान आये ब्रिटिश अफ़सर थॉमस रो ने जहांगीर के शासनकाल को तीन साल तक नज़दीकी से देखा. रो ने बड़ी ईमानदारी से उसका बयान भी किया है. उसके मुताबिक़ नूरजहां उस दौर की सबसे ताक़तवर शख्सियत थी. नूरजहां का यूं ताक़तवर हो जाना कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था. वह ख़ूबसूरत थी और होशियार भी. 1620 के आसपास जहांगीर शराब और अफ़ीम की लत के चलते दमे का रोगी हो गया था. इस दौरान नूरजहां ने सल्तनत की बागडोर थाम ली. अपने नाम के सिक्के गढ़वाये और काम काज के अहम फ़ैसले लेने लगी. उसका परिवार जहांगीर के सबसे नज़दीकी लोगों में शामिल था.इससे आगरा के राजनैतिक हालात बदलने लगे थे. जहांगीर का तीसरा बेटा ख़ुर्रम उर्फ़ शाहजहां अकबर की मानिंद तेज़ तर्रार और जंगजू था, पर फिर भी अकबर से कम. जिस मेवाड़ को अकबर भी न जीत पाए थे, वहां का राणा ख़ुर्रम के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो गया था. ख़ुर्रम भी राणा की ताक़त और न झुकने की आदत से रूबरू था. उसने राणा से आसान सी शर्तों पर आत्मसमर्पण करवाया. ख़ुर्रम ने राणा से सिर्फ मुग़लों की सरपरस्ती क़ुबूल करने की शर्त रखी थी, जिसे राणा ने मान लिया. इस संधि के बाद, ख़ुर्रम का आगरा दरबार में काफ़ी मान हो गया था. जहांगीर ने सरे-आम उसे अपना वारिस होना क़ुबूल किया था और उसे शाह-ए-जहां की पदवी से नवाज़ा गया. इस प्रकार जहांगीर के शासन में दो धड़े पैदा हो गए थे. पहला नूरजहां और दूसरा शाहजहां का. नूरजहां को शाहजहां से ख़तरा महसूस होने लगा तो उसने जहांगीर के चौथे बेटे शहरयार को बढ़ावा दिया. उसने पहली शादी से हुई औलाद लाडली बेग़म का निकाह शहरयार से करवाकर आगरा का माहौल गरमा दिया. शाहजहां उन दिनों जंग पर दक्खन गया हुआ था. जब उसे यह ख़बर मिली तो उसने विद्रोह का ऐलान कर दिया. मुग़ल सल्तनत की सबसे बड़ी समस्या अगर कुछ थी तो यह कि उत्तराधिकार पर कोई नीति नहीं थी. लिहाज़ा, मुग़ल शहजादे तलवारों के ज़ोर पर फ़ैसला करते. शाहजहां की फ़ौज जहांगीर की सेना से भिड़ गयी. जहांगीर की जीत हुई. शाहजहां भागकर उदयपुर के राजा के यहां शरण ली. बताते हैं कि दोनों ने अपनी पगड़ी एक दूसरे को दी थी. बाद में जहांगीर ने शाहजहां को माफ़ कर दिया पर नूरजहां ने उसके बेटे औरंगज़ेब और दारा शिकोह को बतौर ज़मानत आगरा दरबार में रख लिया. विडंबना देखिए, ये दोनों भाई जो उत्तराधिकार के लिए बतौर ज़ामिन जमा हुए थे, आगे चलकर इसी गद्दी के लिए एक दूसरे लड़े. यह जहांगीर के अंतिम सालों का बयान था.
28 अक्टूबर, 1626 को जहांगीर के दूसरे बेटे परवेज़ की मौत हो गयी. अब खाली शाहजहां ही बचा था, जो गद्दी पर बैठता. जहांगीर की तबियत बेहद ख़राब रहने लगी थी. परवेज़ की मौत के ठीक एक साल बाद, उसके इंतेकाल वाले दिन, यानी आज के दिन, 28 अक्टूबर, 1627 को कश्मीर से लौटते हुए जहांगीर राजौरी में चल बसा. उसे लाहौर में दफ़नाया गया. शाहजहां गद्दी पर बैठा. उसने नूरजहां को माफ़ कर दिया. वह लाहौर चली गयी और अंत तक वहीं रही. जहांगीर के शासनकाल को इसलिए भी याद किया जा सकता है कि उसी दौरान अंग्रेज़ों का हिंदुस्तान आगमन हुआ था. ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार करने आई थी. उधर, मुग़लों के जहाज़ हज और व्यापार के लिए अरब सागर में आया जाया करते और अक्सर पुर्तगाली लुटरे या सैनिक उन्हें लूट लेते थे. अंग्रेज़ों ने पुर्तगालियों से समुद्र की बादशाहत छीन ली थी. जहांगीर इस बात के चलते अंग्रेज़ों से प्रभावित हो गया था कि क्योंकि मुग़लिया जहाज़ों को रोकने वाला अब कोई नहीं था. जहांगीर ने ख़ुश होकर अंग्रेज़ों को सूरत में फैक्ट्री लगाने की मंज़ूरी दे दी. आने वाले 100 सालों तक किसी भी मुग़ल ने अंग्रेज़ों को संजीदगी से नहीं लिया.
कमाल की बात है कि थॉमस रो जब हिंदुस्तान से वापस गया तो उसने अपने दौरे को असफल बताया था. विश्व इतिहास में उन तीन सालों की ‘असफलता’ पर भारत की गुलामी की बुनियाद रखी गयी थी.
* अकबर का जन्म 30 अगस्त 1569 ई में हुआ था.
* अकबर ने सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के नाम पर अपने बेटे का नाम सलीम रखा था.
* जहांगीर द्वारा शुरू की गई किताब तुजुक-ए-जहांगीर नाम की आत्मकथा को पूरा करने का का श्रेय मौतबिंद खान को जाता है.
* जहांगीर के पांच बेटे थे- (i) खुसरो (ii) खुर्रम (iii) शहरयार (iv) जहांदार
* जहांगीर के सबसे बड़े बेटे खुसरो ने 1606 ई में अपने पिता के विरूद्ध विद्रोह कर दिया था.खुसरो और जहांगीर की सेना के बीच युद्ध जलांधर के पास हुआ और खुसरो को जेल में डाल दिया गया. खुसरो की सहायता करने के लिए जहांगीर ने सिक्खों के 5वें गुरु अर्जुन देव को फांसी दिलवा दी. खुसरो गुरु से गोइंदवाल में मिला था. 1622 ई में कंधार मुगलों के हाथ से निकल गया. इस पर शाह अब्बास ने अधिकार कर लिया.
* जहांगीर को न्याय की जंजीर के लिए भी याद किया जाता है. ये जंजीर शाहजहां ने सोने की बनवाई थी. जो आगरे के किले शाहबुर्ज और यमुना तट पर स्थित पत्थर के खंबे में लगवाई हुई थी.
* नूरजहां ईरानी निवासी मिर्जा ग्यास बेद की बेटी थी. उनका वास्तविक नाम मेहरून्निसा था. 1549 ई में नूरजहां का विवाह अलीकुली बेग से हुआ. जहांगीर ने अलीकुली बेग को एक शेर मारने के कारण शेर अफगान की उपाधि दी थी. 1607 ई में शेर अफगान की मौत के बाद मेहरून्निसा अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेवा में नियुक्त हुई. सबसे पहले जहांगीर ने नवरोज के अवसर पर मेहरून्निसा को देखा था और उससे 1611 ई में विवाह कर लिया. विवाह के बाद जहांगीर ने उसे नूरमहल और नूरजहां की उपाधि दी.
* मुगल चित्रकला जहांगीर के काल में अपनी चरम सीमा पर थी. वह स्वयं भी उत्तम चित्रकार और कला का पारखी था. इस समय के कलाकारों ने चटख रंग जैसे मोर के गले सा नीला और लाल रंग का प्रयोग करना और चित्रों को त्रि-आयामी प्रभाव देना प्रारंभ कर दिया था.
* जहांगीर के शासन काल के मशहूर चित्रकार थे मंसूर, बिशनदास और मनोहर.जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि कोई भी चित्र चाहे वह किसी मृतक का हो या जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया हो मैं देखते ही तुरंत बता सकता हूं कि ये किसकी कृति है.
* इतमाद-उद-दौला का मकबरा 1626 ई में नूरजहां बेगम ने बनवाया था.मुगलकालीन वास्तुकला के अंतर्गत यह पहली आसी इमारत थी जो सफेद संगमरमर से बनी थी.
* अशोक को कौशांबी स्तंभ पर समुंद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति और जहांगीर का लेख उत्कीर्ण है.
* जहांगीर के मकबरे का निर्माण नूरजहां ने करवाया था.
* जहांगीर के शासनकाल में कैप्टन हॉकिंस, सर टॉमस रो एडवर्ड टेरी जैसे यूरोपीय यात्री आए थे.
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