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टाटा ग्रुप और शापुर पालन जी की 70 साल की दोस्ती में कैसे हुई दुश्मनी, समझिए अब आगे क्या करेगा टाटा समूह https://ift.tt/3mUV2o7

आखिरकार 70 साल पुरानी टाटा समूह और शापुर पालनजी के बीच अब दोस्ती खत्म होने के आखिरी पड़ाव में है। शापुर पालन जी ग्रुप ने कह दिया है कि वे टाटा समूह में अपनी हिस्सेदारी को बेचकर निकलना चाहते हैं। यह इसलिए क्योंकि अब इस लड़ाई में शापुर पालन जी आगे नहीं जाना चाहता है। एसपी ग्रुप ने कहा कि इस लड़ाई से आजीविका और आर्थिक नुकसान ही होगा। हम बताते हैं कैसे दोनों ग्रुप में दुश्मनी शुरू हुई और कैसे यह इस मोड़ पर पहुंची।

कौन हैं साइरस मिस्त्री

साइरस मिस्त्री पालन जी मिस्त्री के छोटे बेटे हैं। उनके पास टाटा समूह की 18 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी है। मुंबई से वे ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल किए हैं। लंदन के इंपीरियल कॉलेज से उन्होंने मैनेजमेंट में एमएससी की डिग्री हासिल की है। वे 144 साल के टाटा समूह के छठें चेयरमैन थे। वे दूसरे ऐसे चेयरमैन थे, जिनका सरनेम टाटा नहीं था। साइरस मिस्त्री को सादगी पसंद है।

1991 में बोर्ड में शामिल हुए

साइरस मिस्त्री 1991 में शापुर पालन जी एंड कंपनी के बोर्ड निदेशक के रूप में शामिल हुए। तीन साल बाद वे ग्रुप के एमडी बन गए। साइरस मिस्त्री जब टाटा संस के चेयरमैन बने थे उस समय कंपनी का कारोबार 100 अरब डॉलर का था। तब मिस्त्री को 2022 तक के लिए चुना गया था। उनसे 500 अरब डॉलर के कारोबार की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

2012 में रतन टाटा ने मिस्त्री के टाटा संस का चेयरमैन चुना था

मिस्त्री को 29 दिसंबर 2012 को टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया, लेकिन 2016 में उन्हें हटा दिया गया था। टाटा ग्रुप ने कहा था कि साइरस मिस्त्री को इसलिए निकाला गया क्योंकि बोर्ड उनके प्रति विश्वास खो चुका था। ग्रुप ने आरोप लगाया था कि मिस्त्री ने जानबूझकर और कंपनी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से संवेदनशील जानकारी लीक की। इसकी वजह से ग्रुप की मार्केट वैल्यू में बड़ा नुकसान हुआ।

आरोपों के जवाब में साइरस मिस्त्री की चिट्ठी

अपने ऊपर लगे आरोपों के जवाब में मिस्त्री ने बोर्ड को कड़े शब्दों में एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उनके शब्द थे, 'मुझे बस इतना ही कहना है कि निदेशक बोर्ड ने कोई प्रतिष्ठाजनक काम नहीं किया है। अपने चेयरमैन को बिना कोई कारण बताए और उसे अपना बचाव करने का मौका दिए बगैर हटाना शायद कॉर्पोरेट इतिहास के पन्नों में अपनी तरह की अलग मिसाल होगी।

टाटा ग्रुप और एसपी ग्रुप दोनों में मिस्त्री बोर्ड में थे

टाटा संस का चेयरमैन होने के अलावा वे 2006 यानी अपने पिता के रिटायर होने के बाद से ही बोर्ड के भीतर शापूरजी पालनजी परिवार के कारोबारी हितों की नुमाइंदगी करने वाले निदेशक भी थे। जब मिस्त्री को हटाया गया था उस वक्त टाटा संस के 18.5 फीसदी शेयर इसी परिवार के पास थे। सबसे बड़े शेयर धारक मिस्त्री ही थे।

रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच रिश्ते

जब साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था तब से एक साल तक उनके रतन टाटा के साथ संबंध बेहतरीन रहे थे। एक समय तो ऐसा भी आया था जब वे मिस्त्री को ट्रस्टों में कोई भूमिका देने के बारे में सोच रहे थे और यहां तक पहुंच गए थे कि वे अपने अवकाश लेने के बाद कोई ऐसा रास्ता बनाना चाहते थे ताकि मिस्त्री इन ट्रस्टों के उनके उत्तराधिकारी बन सकें।

यहां से शुरू हुई लड़ाई

शुरुआती वर्ष में मिस्त्री सभी अहम मसलों पर रतन टाटा से सलाह लिया करते थे। हालांकि विरासत में मिली कुछ समस्याओं से निपटने में दोनों के बीच मतभेद कायम हुए। इसमें टाटा नैनो, इंडियन होटल्स की ओर से देश और विदेश में की गई महंगी खरीदारियां जिन्हें घाटा उठाकर बेचना पड़ा। टाटा स्टील यूके के घाटे से निपटने के तरीके, टाटा डोकोमो का समूचा सौदा और अंततः टाटा पावर की इंडोनेशिया स्थित खदान जैसी कुछ परिसंपत्तियों का समावेश था।

इन फैसलों पर भी मामला बिगड़ा

चार ऐसे बड़े फैसले थे जिनके चलते विशेष रूप से असंतोष पैदा हुआ। टाटा स्टील यूके की बिक्री, वेलस्पन एनर्जी की परिसंपत्तियों की खरीद का फैसला, टाटा और उसके साझीदार डोकोमो के बीच झगड़ा और समूह के कर्ज कम करने के लिए अन्य वैश्विक परिसंपत्तियों की बिक्री के लिए मिस्त्री ने प्रयास किया।

एक बार फिर मिस्त्री बने चेयरमैन

पिछले साल दिसंबर में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने साइरस मिस्त्री के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि मिस्त्री फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन बनाए जाएं। उन्हें हटाना गलत था। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में केस हारने के बाद मिस्त्री अपीलेट ट्रिब्यूनल पहुंचे थे। उन्होंने टाटा सन्स और रतन टाटा समेत कंपनी से जुड़े 20 लोगों पर खामियों के आरोप लगाए थे।

रतन टाटा हैं चेयरमैन

रतन टाटा टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन हैं। टाटा ट्रस्ट के पास टाटा सन्स के 66% शेयर हैं। अपीलेट ट्रिब्यूनल ने फैसले में टाटा सन्स के चेयरमैन पद पर एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति को भी गलत बताया। चंद्रशेखरन जनवरी 2017 में चेयरमैन बने थे। अपीलेट ट्रिब्यूनल ने रतन टाटा को निर्देश दिए कि टाटा सन्स के बोर्ड से दूर रहें।

अब क्यों मामला सामने आया

दरअसल शापुर पालन जी ग्रुप को पैसे की सख्त जरूरत है। हाल में इसका स्टर्लिंग विल्सन कंपनी पेमेंट में डिफॉल्ट हो गई है। शापुर ग्रुप अब टाटा संस में शेयरों को गिरवी रखकर या बेचकर पैसा जुटाना चाहता है। इसी मामले में टाटा समूह ने कहा कि अगर मिस्त्री शेयर बेचते हैं तो वह खरीदने के लिए तैयार हैं। क्योंकि अगर कोई बाहरी शेयर खरीदता है तो इससे टाटा समूह को खतरा बना रहेगा।

शापुर के निकलने से क्या होगा

जानकार मानते हैं कि शापुर पालनजी ग्रुप के निकल जाने से अब टाटा का पहले जैसा दबदबा नहीं रह जाएगा। याद रहे शापुर पालनजी ग्रुप ने कल ही यह फैसला किया है कि वह टाटा ग्रुप से अपना संबंध तोड़ रहा है। इसके साथ ही दोनों समूहों में चली आ रही लड़ाई का भी अंत हो जाएगा। अब अपने कैपिटल को बढ़ाने के लिए एसपी ग्रुप को अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ेगी।

यह एक युग का अंत हो रहा है

महत्वपूर्ण बात यह है कि हितधारकों के लिए, यह एक युग के अंत दिखाई पड़ रहा है। टाटा के साथ रिश्ते खत्म करनेवाले एसपी समूह के बाद टाटा संस को एसपी समूह के 18.37% शेयर को खरीदने की जरूरत है। इसका मूल्य 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

टीसीएस के 16 प्रतिशत शेयर को बेचना होगा

टाटा संस के लिए एसपी समूह को खरीदने के लिए इसे टीसीएस के लगभग 16% को मौजूदा बाजार मूल्यांकन पर बेचने की आवश्यकता होगी। इससे इसकी शेयरहोल्डिंग मौजूदा 72% से घटकर 56% हो जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि टाटा ग्रुप टीसीएस को कंट्रोल करता रहेगा, लेकिन कंपनी से उसका कैश फ्लो पहले की तुलना में कम होगा।

पिछले कई वर्षों से टाटा संस ने इक्विटी को बढ़ावा देने और अपने व्यवसायों को लिक्विडिटी प्रदान करने की क्षमता टीसीएस के डिविडेंड और बायबैक से की है। टीसीएस की 16% बिक्री टाटा संस के वित्तीय फ्लैक्सिबिलिटी को सीमित करेगी और समूह को एक साथ रखने की उसकी क्षमता को कुछ हद तक कमजोर करेगी।

टाटा संस को बेचना होगा संपत्तियां

टाटा संस अपनी गैर-कोर परिसंपत्तियों (non-core assets) को बेच सकता है और कर्ज जुटाने के लिए अपनी लिस्टेड कंपनियों की इक्विटी को गिरवी रख सकता है। टाटा समूह ने टाटा समूह के वित्तीय सेवा व्यवसायों के साथ लिस्टेड कंपनियों के शेयरों को गिरवी रखा है। जब लोन उठाया गया था तो उस पर शायद ही कभी नियंत्रण के संभावित नुकसान पर चिंता व्यक्त की गई थी।

बाहरी फाइनेंसर की जरूरत होगी

लेकिन इस मामले में लोन की राशि काफी बड़ी है और इसे बाहरी (गैर समूह) फाइनेंसरों की आवश्यकता होगी। इससे समूह अपने पिछले 24 महीने के लिए कर्ज को कम करने के प्रयासों के उलट, लिस्टेड कंपनियों में शेयरहोल्डिंग बढ़ाएगा और सभी ग्रुप में क्रॉसहोल्डिंग के मामले सुलझाएगा। दूसरा विकल्प यह है कि रणनीतिक साझेदार या बाहरी निवेशक (निजी इक्विटी, सॉवरेन वेल्थ फंड) टाटा संस में प्रवेश कर सकते हैं। यह शर्तों के साथ आएगा।

टाटा समूह की कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा

ऐसे में टाटा समूह की कंपनियों पर प्रदर्शन का दबाव बढ़ेगा। समूह अब टीसीएस के प्रदर्शन पर टिका नहीं रह पाएगा। समूह की अन्य कंपनियों को प्रदर्शन करना होगा, या उनका पतन हो जाएगा। टाटा ट्रस्ट, टाटा संस पर नियंत्रण रखता है, जो बाकी आपरेटिंग कंपनियों पर नियंत्रण रखता है, जिनमें से कई लिस्टेड हैं और स्टेकहोल्डर्स के प्रति जवाबदेह हैं। टाटा संस अपनी ऑपरेटिंग कंपनियों से अच्छा प्रदर्शन और टाटा ट्रस्ट के लक्ष्यों को हासिल करने में मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।

टाटा समूह जिस बात पर जोर दे रहा था, वह सच हो गई है

टाटा समूह जिस बात पर जोर दे रहा था वह वास्तव में सच हो गई है। एसपी समूह ने टाटा से अलग होने का फैसला तो कर लिया है पर इसे अमली जामा कैसे पहनाया जाएगा, इस पर बहुत सारी अनिश्चितताएँ हैं। इसे देखना काफी दिलचस्प होगा। हालांकि इस फैसले से अन्य ऑपरेटिंग कंपनियों पर कोई भी तुरंत प्रभाव नहीं पड़ा है चाहे वह कंपनियां लिस्टेड ही क्यों ना हो।

आसानी से हजम नहीं होगा 70 साल के रिश्ते का टूटना

दो परिवारों के बीच 70 साल के रिश्ते के यूँ टूट जाने की घटना को आसानी से हजम नहीं किया जा सकता है। खासकर तब, जब इन दो व्यावसायिक घरानों (टाटा और एसपी समूह) ने पहले न जाने कितनी मुश्किलों का सामना एक साथ मिलकर किया होगा और फिर अचानक अपनी राहें अलग करने का फैसला कर लिया।

खैर कुछ भी हो अब इस नए घटना से टाटा ग्रुप में काफी बदलाव आएगा। जिस ग्रुप की स्थापना करीब एक शताब्दी पहले हुई थी और जिसका मकसद समाज के हर तबके में सुधार कर उसे जीने लायक जिंदगी प्रदान करना था, अब उसे अकेले आगे बढ़ना होगा।



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जिस टाटा ग्रुप की स्थापना करीब एक शताब्दी पहले हुई थी और जिसका मकसद समाज के हर तबके में सुधार कर उसे जीने लायक जिंदगी प्रदान करना था, अब उसे अकेले आगे बढ़ना होगा


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