सं विधान के अनुच्छेद 172 में राज्यों के विधान-मंडलों की अवधि का प्रावधान है। प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन की नियत तारीख से पांच वर्ष तक बनी रहेगी। इससे अधिक नहीं। पांच वर्ष की अवधि की समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगा।
अनुच्छेद 172 के इस प्रावधान के अनुसार बिहार की वर्तमान विधान सभा दिनांक 30 नवम्बर, 2020 के उपरान्त स्वतः विघटित हो जाएगी। अतः दिनांक 30 नवम्बर, के पूर्व नई विधान सभा का निर्वाचन सम्पन्न करा लेना एक संवैधानिक बाध्यता है। भारत की निर्वाचन मशीनरी अत्यंत दुर्गम-दुरूह क्षेत्रों में तथा विपरीत परिस्थितियों में भी सफलतापूर्वक निर्वाचन सम्पन्न कराती आई है।
ऐसी परिस्थिति में कोरोना के फलस्वरूप किसी राज्य की विधान सभा के आम निर्वाचन समय पर सम्पन्न कराना मुश्किल काम नहीं है। लेकिन इसके लिए नए दिशा-निर्देश व तैयारियों का दायरा बढ़ाना होगा। हालांकि कोरोना की वजह से कतिपय पार्टियों और स्वतंत्र टिप्पणीकारों की ओर से चुनाव टालने की भी मांग हुई।
समय पर चुनाव न होने के का जम्मू-कश्मीर का है उदाहरण : विधान सभाओं के निर्वाचन ससमय सम्पन्न न होने के एकाध अपवाद भी हैं। वर्ष 1987 में जम्मू एवं कश्मीर की 7वीं विधान सभा के गठन हेतु आम चुनाव 23 मार्च को सम्पन्न हुए और राज्य मंत्रिपरिषद का गठन हुआ। 1990 के जनवरी माह में राज्य की सरकार को बर्खास्त कर राज्यपाल का शासन लागू किया गया।
उस समय के संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर विधान सभा का कार्यकाल 6 (छह) वर्षों का होता था। इसके अनुसार अगली विधान सभा का गठन वर्ष 1993 में हो जाना था, किन्तु कतिपय कारणों से वहां विधान सभा का आम निर्वाचन समय पर सम्पन्न नहीं हो सका और अंततः वर्ष 1996 के सितम्बर-अक्टूबर माह में 8वीं विधान सभा के लिए आम निर्वाचन सम्पन्न कराये गये।
आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि समय पर चुनाव होंगे : आयोग ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि बिहार विधान सभा के आम निर्वाचन समय पर होंगे। भारत के लोकतंत्र की नींव मजबूत है तथा ससमय चुनाव कराने की भारत निर्वाचन आयोग की प्रतिबद्धता में रत्ती भर भी बदलाव नहीं हुआ है।
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, कोरोना महामारी के चलते देश के विभिन्न क्षेत्रों में विधान सभा के आम चुनाव/उप चुनाव टलने की आशंकाओं को पहले ही निर्मूल बता चुके है। विगत दिनों भोपाल के अपने निजी भ्रमण के दौरान उन्होंने स्पष्ट किया था कि कोरोना संक्रमण के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में भी चुनाव समय से होंगे। मध्य प्रदेश विधान सभा की कुल 26 सीटों पर भी उप चुनाव सम्पन्न होने हैं।
कोरोना से बचाव होनी चाहिए आयोग की सर्वोच्च प्राथमिकता : अभी तक कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु कोई टीका या वैक्सीन नहीं है। ऐसी परिस्थिति में निर्वाचनों के संचालन में आने वाली कठिनाईयों को पहले से चिन्हित करना तथा उनके निराकरण हेतु ठोस, कारगर तथा सभी संबंधित व्यक्तियों एवं संस्थाओं को मान्य उपायों का अपनाया जाना आयोग की प्राथमिकता है।
प्रतिकूल परिस्थितियों, जैसे- रेगिस्तान, हिमाच्छादित क्षेत्रों, बाढ़ एवं सूखे का सामना कर रहे क्षेत्रों, उग्रवाद एवं हिंसा प्रभावित क्षेत्रों आदि - में भी स्वच्छ, स्वतंत्र एवं शांतिपूर्ण मतदान सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने का भारत निर्वाचन आयोग का शानदार इतिहास रहा है। आयोग की सक्षमता पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
बढ़ेगी बूथों की संख्या, जरूरत होगी अधिक ईवीएम व वीवीपैट की : कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रत्येक मतदान केन्द्र पर अधिकतम एक हजार निर्वाचकों के नाम सम्मिलित किए जाएंगे। बिहार में लगभग 7,20,20,500 से भी अधिक निर्वाचकों के लिए मतदान केन्द्रों की कुल संख्या वर्तमान लगभग 72,723 से बढ़कर लगभग 1,06,000 से भी ज्यादा होने की संभावना है।
फलस्वरूप ईवीएम, वीवीपैट मशीनों, मतदान केन्द्रों के लिए कार्मिकों एवं सुरक्षा बलों, ईवीएम एवं मतदान कर्मियों तथा सुरक्षा बलों के परिवहन हेतु वाहनों की आवश्यकता में भी उसी अनुपात में वृद्धि होगी। इन सबकी व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए मतदान का कार्यक्रम निर्धारित करना भारत निर्वाचन आयोग की सबसे बड़ी प्राथमिकता होने जा रही है।
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