(राहुल पराशर) पटना जिले में पहले चरण में पांच सीटों पर हुए चुनाव के बाद तीन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बनते दिख रहे हैं। लेकिन, दूसरे चरण में नौ सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर ऐसी स्थिति बनती नहीं दिख रही है। हालांकि, दावेदारों की संख्या कम नहीं है। अपने-अपने पॉकेट में ये मजबूत भी साबित कर रहे हैं।
इसके बाद भी इन सीटों पर वोटरों का मिजाज ही अलग है। यहां पर वोटर आमने-सामने की टक्कर पर ही भरोसा करते हैं। पिछले चुनावों के ट्रेंड भी कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। यही कारण है कि भले ही उम्मीदवारों की संख्या बढ़ जाए, वोटरों का मैंडेट स्पष्ट रहता है। इस कारण पिछले चुनावों में अन्य उम्मीदवारों को अपनी जमानत भी बचा पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है।
सबसे अधिक प्रत्याशी फुलवारी से
पटना जिले की नौ सीटों पर तीन नवंबर को होने वाले चुनाव में इस बार सबसे अधिक उम्मीदवार फुलवारी विधानसभा सीट पर हैं। इस वर्ष 26 उम्मीदवार यहां से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से 19 उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी की थी। इसमें से 17 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे। वर्ष 2015 में सबसे अधिक 31 उम्मीदवार दीघा विधानसभा सीट पर खड़े हुए थे।
इस बार इस सीट से 18 उम्मीदवार ही अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में समीकरण बदला हुआ था। जदयू व राजद महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही थी। इस कारण एनडीए के साथ उनका सीधा मुकाबला था। अन्य दलों व स्वतंत्र उम्मीदवार इन दोनों गठबंधन के बीच अपनी राह बनाने में कामयाब नहीं हो सके।
तीन नहीं बचा पाए थे जमानत
2010 के चुनाव में जब भाजपा व जदयू एक साथ मैदान में थे तो शहर की तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रहने वाले भी अपनी जमानत नहीं बचा सके थे। दीघा, बांकीपुर व कुम्हरार सीट पर जीतने वाले उम्मीदवारों के पक्ष में ही सबसे अधिक वोट पड़े थे। इस बार कई नए दलों और दमदार निर्दलीयों के लड़ने से जोरदार टक्कर होने की उम्मीद है।
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