
बिहार में कैबिनेट विस्तार को ले सत्ता पक्ष की राजनीति, फिलहाल नए व दिलचस्प मोड में है। विस्तार के लिए जदयू, भाजपा की ओर देख रही है, तो भाजपा ‘दिल्ली’ यानी अपने केन्द्रीय नेतृत्व की ओर। तय है कि नीतीश सरकार में भाजपा कोटे के मंत्रियों के शामिल होने का फैसला दिल्ली से ही होगा।
बीते दिनों दो उपमुख्यमंत्री, मंत्री तथा विधानसभा अध्यक्ष के चयन के दौरान यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है। सिवाय मंगल पांडेय के, केंद्रीय नेतृत्व ने ‘पूरे घर को बदल डाला’ के अंदाज में काम किया। आगे भी इसी मोड के कायम रहने की संभावना है। खैर, कैबिनेट विस्तार में देरी की बड़ी वजह यही है।
इस मसले पर प्रदेश भाजपा में चुप्पी है। कोई, कुछ भी कहने को तैयार नहीं। बड़े नेता भी खुद को पूरी तरह अनजान बताते हैं। पार्टी के अंदर भी इसको लेकर फिलहाल कोई चर्चा नहीं है। वैसे दिल्ली में बिहार मंत्रिमंडल को लेकर समीकरण पर चर्चा जारी है। केंद्रीय नेतृत्व के पास एक और टॉस्क है- केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार।
वह इसकी माथापच्ची में भी जुटा है। वहां भी बिहार के कुछ मंत्रियों का भविष्य दांव पर लगा है। नई इंट्री के साथ कुछ की छुट्टी की भी संभावना है। इस विस्तार की एक लाइन जदयू से भी जुड़ती है। केंद्र में विस्तार हुआ, तो इसमें जदयू के सांसद भी शामिल हो सकते हैं। इसके ठीक पलट, जदयू में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। खबर तो यहां तक है कि पार्टी नेतृत्व ने कैबिनेट विस्तार के मुतल्लिक अपना सबकुछ लगभग तय कर लिया है। उसे भाजपा कोटे के लिए आने वाले नामों का इंतजार है।
पुराने फाॅर्मूले से मंत्रिमंडल में स्थान चाहती है भाजपा
नई राजनीतिक परिस्थिति में भाजपा का एक बड़ा वर्ग बिहार में मंत्रियों की संख्या में अपनी अधिक हिस्सेदारी चाहता है। नियमानुसार यहां अधिकतम 36 मंत्री ही हो सकते हैं। पुराने फार्मूले के अनुसार जदयू को 12-14, जबकि भाजपा का 20-22 का कोटा बनता है। एक-एक मंत्री वीआईपी और हम के कोटा का होगा।
भाजपा, पुराने फाॅर्मूले के अनुसार मंत्रिमंडल में स्थान चाहती है। उसका कहना है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी जदयू को देने के बाद मंत्रिमंडल में तो कोटा के अनुसार ही पार्टियों का स्थान तय होना चाहिए। हालांकि, ज्यादा या कम संख्या, विवाद या जिच का शायद ही मुद्दा बनेगा।
माना तो यहां तक जा रहा है कि यदि जदयू आधी-आधी संख्या की जिद पर अड़ा, तो भाजपा अधिक अड़ियल रवैया भी नहीं रखेगी। ऐसे में बीच का रास्ता निकाला जाएगा। दरअसल, खासकर दोनों पार्टियां अपने स्तर से विपक्ष को ऐसी कोई गुंजाइश नहीं देना चाहते, जो उसे विरोध का असरदार मौका दे।
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