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आज से कटेगा स्टाइपेंड, दंडात्मक कार्रवाई भी जूनियर डॉक्टर लिखित आश्वासन पर ही अड़े https://ift.tt/3ho2bee

शनिवार को भी पीएमसीएच और एनएमसीएच से कोई अच्छी खबर नहीं मिली। डॉक्टर की हड़ताल और मरीजों का पलायन जारी रहा। नए आने वाले ज्यादातर मरीज बेइालज ही रहे। शनिवार को मरीजों का आना कम हुआ। जैसे-जैसे हड़ताल की खबर लोगों तक पहुंच रही है। बहुत जरूरतमंद या लाचार मरीज ही पीएमसीएच या एनएमसीएच पहुंच रहे हैं। लेकिन उनमें भी काफी कम को चिकित्सकिया सुविधाएं मिल पा रही हैं।

पीएमसीएच और एनएमसीएच के प्राचार्यों ने विभागों से हड़ताली डॉक्टरों की सूची मांगी है। पीएमसीएच में जूनियर डॉक्टरों की संख्या 500 के करीब है। जूनियर डॉक्टर कोरोना मरीजों के सेवा जुटे हुए हैं और जिनकी ड्यूटी कोविड अस्पताल में लगी है। वे ड्यूटी कर रहे हैं। शनिवार को ओपीडी में 950 और इमरजेंसी में 323 मरीजों ने रजिस्ट्रेशन कराया।

ओपीडी से 325 मरीजों को विभिन्न वार्डों में भर्ती किया गया। चार मेजर आपरेशन हुए। प्राचार्य के मुताबिक जो आपरेशन प्रस्तावित थे। वे सब हुए। जेडीए की माने तो पीएमसीएच में प्रतिदिन से 25 से 30 आपरेशन होते हैं। हड़ताल की वजह से सभी विभागों में ऑपरेशन स्थगित हो रहे हैं। मरीज आपरेशन के लिए इंतजार कर रहे हैं या फिर लौट जा रहे हैं।
इधर शनिवार को जूनियर डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन के बीच वार्ता विफल रही। जूनियर डॉक्टर अपनी मांग पर लिखित आश्वासन के लिए अड़े रहे। जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि पैसा भले अभी नहीं दें पर लिखित देना होगा जनवरी 2020 से स्टाइपेंड में रिविजन किया गया। नियम के मुताबिक जनवरी में ही स्टाइपेंड का रिविजन होना था।

पीएमसीएच के सर्जिकल इमरजेंसी में फिलहाल 44 में से शनिवार तक दो बजे तक 20 बेड खाली रहे। हालांकी, आरएसवी वार्ड में मिली जानकारी के मुताबिक कुल भर्ती मरीजों की संख्या 324 थी। इस वार्ड में 306 बेड है। 18 मरीजों का इलाज फर्श पर बेड को डालकर किया जा रहा है।

हथुआ वार्ड में 62 बेड है। इसमें 20 मरीज ही भर्ती थे। दिन में लगभग 1:30 बजे तक 8 मरीजों को डिस्चार्ज कर दिया गया था। बीए गुजरी वार्ड में 35 बेड, एनएसपीडब्लू में 63, एलएस वार्ड में 16 बेड है। इसमें सभी में आधे से भी कम बेड पर मरीज भर्ती हैं।

26 दिनों में नहीं हुआ सुधार, अब तो डॉक्टर ही गायब
पुनपुन की रहने वाली तारा देवी एक दिसंबर को पीएमसीएच में भर्ती हुई थी। इस दौरान भी इलाज में लापरवाही बरती जा रही थी। लेकिन, जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के बाद मेडिकल कर्मचारियों ने उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया। न तो डॉक्टर राउंड पर आ रहे थे और न ही मेडिकल कर्मी उनके इलाज में कोई सहयोग कर रहे थे। इस परेशान होकर तारा देवी के परिजन शनिवार को उन्हें हॉस्पिटल से वापस ले गए।

ओपीडी पर लगा ताला, दो हफ्ते बाद डॉक्टर ने बुलाया
डॉक्टरों ने इलाज के लिए 14 दिनों के बाद बुलाया। ऐसे में चलने-फिरने में लाचार सीवान के रहने वाले प्रभुराम अपने बेटे और पत्नी के साथ ओपीडी के बाहर नाली के पास लेट गए। बेटा भी छोटा है,। जिससे वह प्रभु राम को न तो नाली के पास हटा पाने में सक्षम है और न ही कोई दूसरा सहायता के लिए आगे आया। प्रभुराम के बेटे का कहना है कि नसों में परेशानी की वजह से उन्हें चलने-फिरने में परेशानी हो रही है।

सरकारी हॉस्पिटल पर भरोसा नहीं, जिंदगी बचाने के लिए प्राइवेट डॉक्टर के भरोसे
हाजीपुर के रहने वाले सुशील सिंह का दो दिन पहले एक्सीडेंट हो गया था। वे हाजीपुर में डॉक्टर से इलाज करवा रहे थे। जहां पर शनिवार को सुशील सिंह को डॉक्टर ने पीएमसीएच रेफर कर दिया। शनिवार को सुबह वे पीएमसीएच पहुंचे, लेकिन न तो उनके इलाज के लिए कोई डॉक्टर सामने आया और न ही कोई मेडिकल कर्मचारी सही तरीके से जानकारी दे रहा है। सुशील सिंह के परिजनों का कहना है कि जिंदगी बचाने के लिए वे प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज करवाएंगे। सुशील सिंह अकेले ऐसे मरीज नहीं हैं। बल्कि शनिवार को कई ऐसे मरीज मिले जो पीएमसीएच की वर्तमान व्यवस्था से नाराज दिखे।
इलाज तो दूर एचआईवी मरीजों को भी नहीं मिल रही दवा
जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर, सीनियर डॉक्टरों सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने से मतलब और मेडिकल कॉलेज प्रशासन सुस्त ऐसे में कर्मचारी भी लापरवाह हो गए। इसका नतीजा है कि हॉस्पिटल में कम भीड़ होने के बाद भी दवाएं सही समय पर नहीं दी जा रही है। मनेर से आए एचआईवी पीड़ित मरीज का कहना है कि डॉक्टरों की कमी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

सामान्य दवा की बात छोड़े एचआईवी जैसे बीमारी की दवा पाने के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ रही है। पीएमसीएच में हर दिन दो हजार मरीज इलाज के लिए आते हैं। हर विभाग में लगभग 8 से 10 जूनियर डॉक्टर हैं, जो लगातार वार्ड में राउंड लगाते रहते है।

सिनियर डॉक्टर 24 घंटे में एक बार आए, इलाज में लापरवाही से बेटे की गई जान
मसौढ़ी की रहने वाली विभा देवी का कहना है कि इलाज में लापरवाही की वजह से बेटे की मौत हो गई। उनका बेटा अभय दो सप्ताह पहले हॉस्पिटल में भर्ती हुआ। चार दिन पहले जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल शुरू हो गई। जिसके बाद सीनियर डॉक्टर 24 घंटे के दौरान मात्र एक बार ही वार्ड में राउंड लगाते थे। इस दौरान मरीज के साथ क्या परेशानी हो रही है, इसके बारे में जानकारी लेने वाला कोई नहीं था। इसकी वजह से बेटे की मौत हो गई।



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Stipend will be cut from today, punitive action will also be adhered to by junior doctor on written assurance


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