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कल-आज और कल: आपातकाल की आड़ में हुआ 1977 का चुनाव और निबट गई कांग्रेस सरकार https://ift.tt/311H0rY

(भैरव लाल दास) जून, 1977 में हुए बिहार विधान सभा चुनाव पर इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल एवं बिहार में हुए ऐतिहासिहक छात्र आंदोलन का साफ असर था। कांग्रेस की सरकार निबट गई। दरअसल, हवा 4 दिसंबर,1973 से ही गर्म होने लगी थी। उस दिन परिवहन निगम की दो बसों को छात्रों ने अगवा कर लिया और पटना की विभिन्न सड़कों पर प्रदर्शन हुए। छात्रों एवं परिवहन कर्मियों में झड़प हुई। 10 दिसंबर को मगध विश्वविद्यालय के शिक्षेत्तर कर्मियों, आनंद मार्गियों और होम्योपैथी कॉलेज के छात्रों का प्रदर्शन हुआ।

पुलिस द्वारा 10 राउंड गोली चलाई गई। इसके बाद राज्यव्यापी हड़ताल हो गई। मूल्यवृद्धि के विरोध में 17 दिसंबर, 1973 को 120 से अधिक ट्रेड यूनियन, शिक्षक, अभियंता, पत्रकार, सरकारी कर्मचारी, विश्वविद्याल एवं रेल कर्मचारियों द्वारा हड़ताल किया गया। नारा लगाया गया... पूरा राशन, पूरा काम- नहीं तो होगा चक्का जाम।

22 जनवरी 1974 को ‘यूथ फॉर डेमोक्रेसी’ की ओर से हुए प्रदर्शन में जय प्रकाश नारायण ने छात्रों से आह्वान किया कि वे कॉलेज छोड़कर कुछ दिनों का समय राज्य के गांवों के लिए दें। कर्पूरी ठाकुर ने राजनीतिक ‘जेहाद’ का एलान किया। जनसंघ, सीपीआई, एसएसपी द्वारा गठित संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से 21 जनवरी, 1974 को बिहार बंद का आह्वान किया गया।

चल रही थी अफसरों की मनमानी, 1 साल में निकाले गए 176 ऑर्डिनेंस
छात्र आंदोलन का दूसरा चरण 11अप्रैल, 1974 को शुरू हुआ। विधानसभा भंग करो और बिहार सरकार बर्खास्त करो मुख्य नारा था। हड़ताल का प्रसार पूरे राज्य में हो गया। सीआरपीएफ, राज्य रिजर्व बल, मिलिट्री पुलिस आदि द्वारा बर्बरता की गई। 5 जून, 1974 को जेपी ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। गया में हुई तीन पुलिस फायरिंग की घटना को अब्राहम कमिटी द्वारा लीपा-पोती कर दी गई। एक साल में करीब 176 ऑर्डिनेंस निकाले गए जो इसका द्योतक था कि राज्य में जनतांत्रिक सरकार नहीं, अफसरों की मनमानी चल रही है।

5 से 15 अगस्त तक संपूर्ण क्रांति सप्ताह का आयोजन किया गया। । 4 नवंबर 1974 को बिहार छात्र संघर्ष समिति और बिहार जनसंघर्ष समिति द्वारा मंत्रिमंडल को बर्खास्त किए जाने के लिए प्रदर्शन किए गए। जेपी पर पुलिस आक्रमण किए गए। नानाजी देशमुख और सर्वोदयी नेता बाबूराव चंदावर ने जेपी की जान बचाई। 18 मार्च, 1975 को ऐसा ही प्रदर्शन किया गया।
छात्र आंदोलन, ‘इंदिरा गांधी हटाओ’ के नारे में बदल गया

गुजरात की तर्ज पर 16 मार्च, 1974 को 14 सूत्री मांगों को लेकर छात्रों ने आंदोलन शुरू किया जो बाद में ‘इंदिरा गांधी हटाओ’ में बदल गया। 18 मार्च को बिहार विधान सभा बजट सत्र शुरू होने वाला था। महामहिम राज्यपाल द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने से रोकने पर छात्र आमादा थे। प्रदर्शन हिंसक हो गया। सर्चलाइट और प्रदीप अखबार के कार्यालयों में आग लगा दी गई और वहां गोलीबारी की गई।

पटना का डाक बंगला चौराहा आंदोलन का अखाड़ा बन गया। डी लाल एंड सन्स, राजस्थान होटल, सुजाता होटल आदि में लूटपाट की गई और जगह-जगह आग लगा दी गई। पुलिस द्वारा चलाई गई गोली में 5 लोगों की मौत हो गई। छात्रों को कर्पूरी सहित कई नेताओं ने संबोधित किया। महामाया प्रसाद द्वारा भाषण करते हुए कुर्ता फाड़ लेने की घटना से प्रदर्शनकारियों में नया उबाल आ जाता था। केंद्रीय गृह मंत्री उमाशंकर दीक्षित और रक्षा मंत्री जगजीवन राम पटना आए।

समय से पहले बर्खास्त हुई चुनी हुई सरकार
बिहार विधानसभा का कार्यकाल 19 मार्च 1978 तक था। 18 अप्रैल, 1977 को केन्द्रीय गृह मंत्री ने 9 राज्यों के मुख्यमंत्री को इस्तीफा दे देने और विधानसभा भंग करने का फरमान जारी किया। उनके इस इस निर्णय के विरुद्ध मध्य प्रदेश और बिहार की ओर से उच्चतम न्यायालय में मुकदमा दर्ज किया गया। मुख्य न्यायाधीश एमएच बेग ने याचिका खारिज कर दी। 30 अप्रैल, 1977 को सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।

1977 के चुनाव में हुई चुनावी हिंसा
10-12 जून, 1977 को बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ। चुनाव में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। मोकामा में श्रीमती कृष्णा शाही पर हमला हुआ। फारबिसगंज के उम्मीदवार सरयू मिश्रा का अपहरण कर लिया गया ताकि चुनाव बाधित हो जाए। चुनाव पूर्व सोशलिस्ट पार्टी का जनता पार्टी में विलय हो गया था। कांग्रेस व कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति लोगों में बहुत गुस्सा था, क्योंकि कांग्रेस ने आपातकाल लगाया और कम्युनिस्ट ने समर्थन किया। 1977 के चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता थी कि उच्च, मध्यम व निम्न जातियों के मतदाताओं ने गोलबंद होकर जनता पार्टी के पक्ष में वोट किया।



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Today and today: 1977 elections under the guise of emergency and the Congress government settled


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