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पटना के घरों में फर्श के नीचे दफन हैं नाले, सफाई कराएंगे भी तो कैसे? https://ift.tt/2UKmyYS

2005 के तत्कालीन नगर आयुक्त केपी रमैय्या ने 60 ऐसे मकानों की सूची जारी की थी, जिन्होंने ड्रेनेज सिस्टम को ही अपने फर्श के नीचे दबा दिया था। ऐसे मकानों को तोड़ने का आदेश देते हुए उन्होंने कहा था कि कुछ जमीन मालिकों ने थोड़ी-सी जमीन हड़पने के ख्याल से ड्रेनेज पर ही मकान बना लिया है। इसका खुलासा जल निकासी में परेशानी की वजह खोजने के दौरान ही हुआ था। इनके आदेश के बाद 2007 में पटना के नगर निगम कमिश्नर रहे राणा अवधेश ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में ऐसे 19 मकानों के नालों पर बने होने का जिक्र करते हुए इसे तोड़ने का आदेश दिया था।

कागज पर ऐसे मकानों की संख्या 60 से घटकर 19 हो गई और फिर इन कागजातों को भी नगर निगम ने अपने दफ्तर में ही कहीं दफन कर दिया। अबतक न तो मकानों पर न तो कार्रवाई हुई न उनके अंदर स्थित चैंबरों की कोई तकनीकी वैकल्पिक व्यवस्था ही की गई। कंकड़बाग को जलजमाव से मुक्ति दिलाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे प्रो. डॉ. शंकर कुमार का कहना है कि 1990 के दशक में कंकड़बाग में शुरू हुई जमीन की बेतरतीब बिक्री से गड़बड़ी की शुरुआत हुई और उसके बाद हालत खराब होती गई।
यहां के जलजमाव की समस्या को दूर करने को लेकर कई वर्षों से संघर्ष कर रहे और कई पीआईएल कर चुके तारकेश्वर ओझा कहते हैं कि कंकड़बाग एक वेल प्लांड कॉलोनी है। यहां 1965 में सिवरेज बना और 1980 में ड्रेनेज। दोनों को बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने बनाकर उसे नगर निगम को सौंप दिया। दोनों के लिए अलग संप हाउस भी बना। गंगा भवन सिवरेज संप हाउस और योगीपुर स्ट्रॉर्म संप हाउस। दोनों का आउट फॉल पहाड़ी पर है। समय के साथ इसे दरकिनार कर इसका पूरा सिस्टम ही चौपट कर डाला गया। नतीजा है कि प्लांड कॉलोनी को हर साल बरसाती जलजमाव झेलने की आदत हो गई है। पिछले साल तो हद ही टूट गई।



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2007 में पटना के नगर निगम कमिश्नर रहे राणा अवधेश ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में ऐसे 19 मकानों के नालों पर बने होने का जिक्र करते हुए इसे तोड़ने का आदेश दिया था।


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