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सात साल पहले नेपाल में रंगरेलियां मनाते पकड़े गए तीनों जज बर्खास्त, बर्खास्तगी फरवरी 2014 से ही प्रभावी https://ift.tt/3hcVWcT

सात साल पहले नेपाल के होटल में आपत्तिजनक स्थिति में पकड़े गए 3 न्यायाधीश आखिरकार बर्खास्त कर दिए गए। बिहार सरकार ने सोमवार को बाकायदा इसकी अधिसूचना जारी कर दी। सरकार ने यह कार्रवाई पटना हाईकोर्ट के आदेश पर की है।

सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना के मुताबिक समस्तीपुर परिवार न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश हरिनिवास गुप्ता, अररिया के तत्कालीन तदर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जितेंद्र नाथ सिंह और अररिया के तत्कालीन अवर न्यायाधीश सह मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कोमल राम को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। ये सभी फरवरी 2014 से बर्खास्त माने जाएंगे। इनको रिटायरमेंट के बाद का कोई लाभ नहीं मिलेगा। यानी, ये सभी तरह के सेवांत बकाए और अन्य लाभों से वंचित रहेंगे।

इन्हें रिटायरमेंट के बाद का भी कोई लाभ नहीं मिलेगा

तीनों न्यायाधीशों समस्तीपुर परिवार न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश हरिनिवास गुप्ता, अररिया के तत्कालीन तदर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जितेंद्र नाथ सिंह और अररिया के तत्कालीन अवर न्यायाधीश सह मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कोमल राम को नेपाल पुलिस ने मैट्रो गेस्ट हाउस, विराटनगर में आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था। यह 26 जनवरी 2013 की बात है। न्यायिक अधिकारी होने के कारण नेपाल पुलिस ने इन्हें छोड़ दिया।

ये तीनों अलग-अलग कमरों में ठहरे थे। मगर वहां के एक अखबार में इस बारे में प्रमुखता से खबर छपने के बाद इस मामले की जांच पूर्णिया के जिला जज संजय कुमार से कराई गई। उन्होंने रिपोर्ट हाईकोर्ट को भेजी। जांच में यह सामने आया कि गेस्ट हाउस के रजिस्टर के उन पन्नों को फाड़ दिया गया था, जिसमें इनकी इंट्री थी।

हाईकोर्ट की जांच में भी चरित्रहीन साबित हुए थे तीनों न्यायाधीश

पूर्णिया जिला जज की रिपोर्ट और सिफारिश पर पटना हाईकोर्ट की स्टैंडिंग कमेटी ने इन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश की। पटना हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने 8 फरवरी 2014 को इन तीनों न्यायाधीशों को चरित्रहीनता का दोषी माना। साथ ही कड़ा कदम उठाते हुए उन्हें बर्खास्त करने का फैसला सुनाया।

इसके खिलाफ तीनों ने फिर से खुद के बचाव की कानूनी गुंजाइश बनाई। मगर वे फिर नाकामयाब रहे। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बारे में हाईकोर्ट के महानिबंधक को पत्र लिखा। बहरहाल, बीते 3 सितंबर को हाईकोर्ट के महानिबंधक ने राज्य सरकार को अनुशंसा की। इसके आलोक में सरकार ने यह कार्रवाई की।

सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली सभी आरोपों को सही ठहराया था

तीनों आरोपी न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों के खिलाफ इंक्वायरी को सही बताया और कार्रवाई को खारिज करने से साफ इनकार कर दिया। इससे पहले इन्होंने पटना हाईकोर्ट प्रशासन की कार्यवाही को अपने हिसाब से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की।

कार्यवाही की प्रक्रिया में सही तरीके से सुनवाई का मौका नहीं देने का आरोप लगाते हुए पटना हाईकोर्ट प्रशासन के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में ही रिट दायर की। हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट प्रशासन की कार्यवाही को थोड़ा सुधार कर फिर से इंक्वायरी करने का आदेश दिया। अंतत: ये दोषी ही माने गए। और हाईकोर्ट ने इनकी बर्खास्तगी की अनुशंसा कर दी।



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Seven years ago, all three judges were caught in Nepal celebrating their sacking, dismissal effective from February 2014


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