सोनपुर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था नवगीतिका लोक रसधार के तत्वावधान में रविवार को ऑनलाइन सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। बिहार के कई लब्ध प्रतिष्ठित लोक कलाकारों ने पारंपरिक गीतों की शानदार प्रस्तुति कर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया। सावन महीना के स्वागत में कई कलाकारों ने शिव भजन एवं कजरी आदि जैसी लोकगीतों की प्रस्तुति की। बिहार के वरिष्ठ लोक गायक एवं गीतकार भरत सिंह भारती की अध्यक्षता में आयोजित ऑनलाइन सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत सुप्रसिद्ध लोक गायिका नीतू कुमारी नवगीत ने गणेश वंदना मंगल के दाता रउआ बिगड़ी बनाई जी, गौरी के ललना हमरा अंगना में आईजी गणेश वंदना से की।
इसके बाद उन्होंने शिव के मनाइब जी शिव मानत नाहीं शिव नचारी की प्रस्तुति की। कार्यक्रम में वरिष्ठ चित्रकार एवं कला समीक्षक मनोज कुमार बच्चन ने कहा भारतीय लोकगीत की जड़ें उतनी ही प्राचीन है जितना ग्रामीण सभ्यता का इतिहास। लोकगीत में जनमानस की परंपरा, रीतिरिवाज, धार्मिक अनुष्ठान, संस्कार, ऋतु संबंधी गीत क्षेत्रीय भाषा में विस्तार पाती है। लोकगीत ग्राम्य जन जीवन के हर्ष-विषाद तथा उत्स-संस्कार का प्रतिनिधित्व करती है। वहीं, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने कहा लोकगीत किसी संस्कृति के मुंह बोलते चित्र हैं।
देवघर की लोक गायिका प्रियंका भारद्वाज ने ना जाने कजरा के मोल बलम हमरो परदेसिया, मुजफ्फरपुर के प्रतिष्ठित लोकगायक प्रेम रंजन ने ले ले अइहा बालम बजरिया से चुनरी, छपरा के लोक गायक पिंटू पांडेय ने पीसत पीसत भांग भोला हाथ मोर दुखाता, मुजफ्फरपुर के लोक गायिका वैष्णवी ने हरी हरी सावन सर्व सुहावन घटा घिरी आइल हे हरि,आरा की नवोदित लोक गायिका मोनी सिंह ने निर्गुण गीत रहनी में बाबा के रे बगिया आदि की प्रस्तुति की। कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ लेखक एवं समीक्षक प्रो. प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा कि लोकगीत हमारी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि हैं।
इन गीतों से हमारे संस्कार परिष्कृत होते हैं। वहीं, वरिष्ठ लोक गायक भरत सिंह भारती ने कजरी गीत उमड़ी घुमड़ी घन शोर मचाबत ए रामा एवं कवयित्री सह गीतकार नीलम श्रीवास्तव के कजरी गीत अरे रामा आई पावस ऋतु न्यारी ,बदरिया रिमझिम बरसे ना की प्रस्तुति कर वातावरण को सावनमय बना दिया।
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